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६३. पत्र : देवी वेस्टको

आश्रम
साबरमती
२४ जून, १९२६

प्रिय देवी[१]

तो अब तुम अनाथ हो गई। लेकिन अनाथ क्यों? तुम्हारे पिता काफी पकी उमरमें उठे हैं और तिसपर इस परम सन्तोषके साथ कि उन्होंने नेक जिन्दगी बिताई और उनके साथके लोगोंने उन्हें अपना स्नेह दिया। इसलिए मुझे लगता है कि तुम और तुम्हारे परिवारके अन्य लोग बहुत शोकाकुल न हुए होंगे। कब्रपर अंकित करने के लिए यह उक्ति कितनी सुन्दर है : पीछे छूटनेवालोंके हृदयोंमें जीवित रहना मरना नहीं होता।'

यह सच है कि भारत आज इन पागलपनसे भरे दंगोंके कारण दो हिस्सों में बँट गया है। ईश्वरके तरीके हमारी समझ से परे हैं। आशा है कि दंगाई इस लड़ाई से जल्दी ही ऊब जायेंगे। इन झगड़ोंका कारण निरा पागलपन है।

हम लोग मामूली अच्छे हैं। मामूली अच्छे मैंने इसलिए कहा कि आजकल राधा और रुखी बीमार हैं। वे मौसमी बुखारसे पीड़ित हैं। देवदासका अभी-अभी "एपेंडिक्स" का ऑपरेशन हुआ है और वह स्वास्थ्य लाभ कर रहा है। मणिलाल अभीतक फिनिक्समें ही है। रामदास खादीका काम कर रहा है। भाई कोतवालसे इधर कई महीनोंसे मुलाकात नहीं हुई।

क्या मैंने तुम्हें यह बात लिख दी है कि आश्रममें इस समय एक अंग्रेज बहन भी रहती है। उनका नाम है— कुमारी स्लेड। हमने उनका भारतीय नाम रखा है— मीराबाई । इस हफ्ते शायद एक जर्मन महिला भी आयें।

तुम्हारा,

देवी

२३, जॉर्ज स्ट्रीट
लाउथ लिंक

लन्दन

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६३९) की फोटो-नकलसे।

  1. १. दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके सहकमीं, एल्बर्ट वेस्टकी बहन।