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६१. टिप्पणियाँ

ग्राम संगठन

प्राध्यापक नारायणदास मलकानीने अभी हालके बारडोली ताल्लुकेके अपने दौरेका जो विवरण लिखा है वह मनोरंजक और शिक्षाप्रद भी। पाठक देखेंगे कि उसमें बारडोली ताल्लुकेके पिछड़े हुए वर्गीमें ग्रामसुधार कार्यका जो प्रयोग सन् १९२१ से चल रहा है उसका संक्षिप्त विवरण भी है। वहाँ यह कार्य तब शुरू किया गया था जब देशमें मद्य-निषेध आन्दोलनकी लहर चल रही थी। इस छोटी-सी पट्टीमें चरखेके प्रचारसे यहाँके रहनेवाले सीधे-सादे लोगोंके जीवनमें धीरे-धीरे, किन्तु निश्चित तौरपर एक क्रान्ति हो रही है। यदि चरखा न होता तो इन गाँवोंमें मद्य निषेधके कार्यकर्ताओंके लिए कोई आधार ही न होता। इसके अतिरिक्त यदि कार्यकर्ता इन गाँवोंके लोगोंसे कई दूसरे तरीकोंसे सम्पर्क न बनाये रखते और उनके खाली वक्तके लिए एक उपयोगी काम न जुटाया होता, तो गाँवोंके लोगोंपर उनका कोई असर भी न होता। कार्यकर्ताओंको गाँव के लोगोंका ध्यान शराबकी ओरसे हटाने और उनकी दिलचस्पी सूत कातनेमें पैदा करनेमें सफलता मिली है। इन लोगोंके बाल-बच्चोंको पढ़ाने-लिखानेका प्रयत्न किया जा रहा है। उनको जो शिक्षा दी जा रही है वह पुराने ढंगको कदापि नहीं है। वह उनके वातावरणके अनुरूप है और उसका उद्देश्य यह है कि उससे उनकी समस्त शक्तियों का विकास हो। उसके मूलमें यह खयाल नहीं है कि वे पढ़-लिखकर बाबू बन जायें, बल्कि यह है कि वे ऐसे नागरिक बनें जो अपने पैरों पर खड़े हो सकें और अपने खेती, सुत-कताई, कपड़ा-बुनाई और ऐसे ही दूसरे पुश्तैनी धन्धोंको अच्छी तरह चालू रख सकें। किन्तु, अभी तो यह प्रयोग प्रारम्भिक दौर में है। बच्चे ही बड़े होकर पिता बनते हैं। और प्रयोगकी इस शैशवास्थामें भी अबतक जो-कुछ किया गया है उससे इसका भविष्य उज्ज्वल होगा, यह आशा बँधती है, क्योंकि हाथसे सूत कातना शुरू करनेके साथ-साथ लोगों में उसको कायम रखनेके लिए आवश्यक दूसरे धन्धे भी धीरे-धीरे पुनर्जीवित किये जा रहे हैं। यह आशा कोई एकदम बे-हिसाब आशा नहीं है कि लोगोंमें यह जो क्रान्ति हो रही है वह उन्हें उन लोगोंसे, जिन्हें प्राध्यापक मलकानीने देशी अफसर कहा है, मुक्त करा सकेगी; और सो भी हिंसात्मक साधनोंसे नहीं, बल्कि विशुद्ध अहिंसात्मक साधनोंके बलपर ही। उन सावनोंसे इन देशी अफसरोंपर जोर-जबर्दस्ती नहीं होगी, बल्कि उनका हृदय परिवर्तन होगा। लोगोंको साहूकारों और शराबके ठेकेदारोंसे स्वतन्त्र करने-भरको आवश्यकता है; इतना होते ही वे साहूकारोंसे कर्ज और शराबके ठेकेदारोंसे शराब न लेते ही स्वतन्त्र हो सकते हैं।