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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेके कारणोंकी जरूरतपर तर्क-वितर्क न करके उसे मान लेना ही आवश्यक हो। यह सिपाही के लिए अत्यन्त आवश्यक गुण है। कोई जाति उस समयतक विशेष उन्नति नहीं कर सकती जबतक उसकी बहुसंख्यक जनतामें यह गुण वर्तमान न हो। पर इस प्रकारके आज्ञापालनके अवसर सुव्यवस्थित समाजमें बहुत ही कम होते हैं, और होने कम ही चाहिए। पाठशाला में बच्चोंके लिए सबसे बुरी बात जो हो सकती है वह यह है कि जो कुछ अध्यापक कहें उसे उन्हें आँख बन्द करके मानना ही पड़ेगा। बात यह है कि यदि अपने अधीन लड़के और लड़कियोंकी तर्क शक्तिको अध्यापक तेज करना चाहता है तो उसको चाहिए कि उनकी बुद्धिको हमेशा काममें लगाता रहे और उन्हें स्वतन्त्र रूपसे विचार करनेका मौका दे। जब बुद्धिका काम खतम हो जाता है तभी श्रद्धाका काम आरम्भ होता है। पर दुनिया में बहुत ही कम काम इस प्रकारके होते हैं, हम बुद्धि द्वारा जिनके कारण नहीं समझ सकते। यदि किसी स्थानमें कुएँका जल गन्दा हो और वहाँके विद्यार्थियोंको उबला और साफ किया हुआ जल पीना पड़े और उनसे इस प्रकारके जल पीनेका कारण पूछा जाये और वे कहें कि किसी महात्माका हुक्म है इसलिए हम ऐसा जल पीते हैं तो कोई भी शिक्षक इस उत्तरको पसन्द नहीं कर सकता। और यदि यह उत्तर इस कल्पित अवस्थामें गलत है तो चरखा चलाने के सम्बन्धमें भी लड़कोंका यह उत्तर बिलकुल गलत है। जब मैं अपनी महात्माकी गद्दीसे उतार दिया जाऊँगा— जैसा मैं जानता हूँ कि बहुतेरे घरोंमें उतार दिया गया हूँ, (बहुतेरे पत्र-प्रेषकोंने कृपा कर मेरे प्रति अपनी श्रद्धा घट जानेकी सूचना मुझे भी दे दी है)— तब मुझे भय है कि चरखा भी उसके साथ ही साथ नष्ट हो जायेगा। बात यह है कि उद्देश्य मनुष्यसे कहीं बड़ा होता है । सचमुच चरखा मुझसे अधिक महत्वका है। मुझे बड़ा दुःख होगा यदि मेरी किसी भद्दी गलतीसे अथवा मुझसे लोगोंके नाराज हो जानेसे लोगोंका मेरे प्रति सद्भाव कम हो जाये और इस कारण चरखेको भी नुकसान पहुँचे। इसलिए बहुत अच्छा हो यदि लड़कोंको उन सब विषयोंपर स्वतन्त्र विचार करनेका मौका दिया जाये जिनपर वे इस प्रकार विचार कर सकते हैं। चरखा मूलतः एक ऐसा ही विषय है जिसपर उनको स्वतन्त्र रूपसे विचार करना चाहिए। मेरे विचारमें इसके साथ भारतकी जनताकी भलाईका सवाल जुड़ा हुआ है। इसलिए छात्रोंको यहाँकी जनताकी भयंकर दरिद्रताको जानना चाहिए। उनको ऐसे गाँवोंको अपनी आँखों देखना चाहिए जो नष्ट होते जा रहे हैं। भारतकी कितनी आबादी है, उनको जानना चाहिए। उनको यह जानना चाहिए कि यह कितना बड़ा देश है और यहाँके करोड़ों निवासी अपनी थोड़ी आमदनीमें थोड़ी-सी वृद्धि किस प्रकार कर सकते हैं। उनको देशके गरीबों और पददलितोंके साथ अपनेको मिला देना सीखना चाहिए। उनको यह सीखना चाहिए कि गरीबसे-गरीब आदमीको जो नहीं मिल सकता उसे जहाँतक हो सके वे अपने लिए भी न लें। तभी वे चरखा चलानेके गुण समझ सकेंगे। तभी उनकी श्रद्धा प्रत्येक प्रकारके आघातको— जिसमें मेरे सम्बन्धमें विचार-परिवर्तन भी शामिल है— बर्दाश्त कर सकेगी। चरखेका आदर्श इतना बड़ा और महान है कि उसे किसी एक व्यक्तिके