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आत्मत्याग

सहमत नहीं होते, वे भी अपनी ही ओरसे सद्भाव दिखा रहे हैं। यह सब देखकर हमें अपने हृदय में अतिशय प्रसन्नता होती है।

हमारा अनुमान है कि हमें अपना कार्य फिर प्रारम्भ करनेके लिए दो लाख रुपयों की जरूरत होगी। हमारे सदस्य विभिन्न स्थानोंमें घूमेंगे; किन्तु उनकी संख्या बहुत नहीं है और वे हर जगह नहीं जा सकते। हम अपने सहायकों और हमदवसे, जो देशके सभी भागोंमें फैले हुए हैं, व्यावहारिक सहायताको अपेक्षा रखते हैं। हम छोटीसे-छोटी रकमका स्वागत करेंगे; वास्तवमें छोटी-छोटी रकमें, यदि वे काफी संख्या में दी जाये तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी और उससे हम यह समझेंगे कि हम लोग जिनकी सेवा करना चाहते हैं उनका बहुत बड़ा भाग हमें जानता है और हमारी सेवाकी कद्र करता है।

इस अपीलके वितरित किये जानेके वक्ततक २६,००० रुपये इकट्ठे किये जा चुके हैं। मुझे आशा है कि पूरे दो लाख रुपयोंकी रकम जो इन दोनों छापाखानोंको जमानेके लिए और अखबारोंको चलाने के लिए जरूरी है, इन पंक्तियोंके प्रकाशित होनेतक इकट्ठी हो चुकेगी। भारत सेवक समाज-जैसी सार्वजनिक संस्थाओं का सच्चा बीमा यही है कि जनता उनके प्रति सद्भाव रखे और उसको मूर्त रूप दे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-६-१९२६

५८. आत्मत्याग

मुझे बहुत से नौजवानों के इस आशयके पत्र मिलते रहते हैं कि उनपर कुटुम्ब- निर्वाहका बोझ इतना ज्यादा है कि देश-सेवाके कार्यसे जो वेतन उन्हें मिलता है, वह उनकी जरूरतों के लिए बिलकुल काफी नहीं होता। उनमें से एकने कहा है कि मुझे तो अब यह काम छोड़कर, रुपया उधार लेकर या भीख मांगकर यूरोप जाना पड़ेगा जिससे ज्यादा कमाई करना सीख सकूँ। दूसरे एक भाई किसी ऐसे धन्धेकी तलाश में हैं जिससे काफी पैसा मिल सके। इनमें से हरएक नौजवान ईमानदार, सच्चरित व आत्मत्यागी कार्यकर्ता है। किन्तु एक उलटा प्रवाह चल पड़ा है। कुटुम्बकी आवश्यकताएँ बढ़ गई हैं। खद्दर या राष्ट्रीय शिक्षाके कार्य से उनका पूरा नहीं पड़ता। वेतन अधिक माँग कर ये लोग देशसेवाके कार्यपर भार बनना पसन्द नहीं करते। परन्तु इस विचारसे अगर सभी यह काम छोड़कर पैसा कमानेमें लग जायें तो नतीजा यह होगा कि या तो देश सेवाका कार्य बिलकुल ही बन्द हो जायेगा, क्योंकि वह तो ऐसे ही स्त्री-पुरुषोंके परिश्रमपर निर्भर रहा करता है, या हो सकता है कि आम तौरपर सभीके वेतन पर्याप्त बढ़ा दिये जायें; तो उसका नतीजा भी वैसा ही खराब होगा।