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५६. अन्य देशोंमें चरखा

कोयम्बटूरके श्री बालाजीरावने 'पीपुल्स ऑफ ऑल नेशन्स' नामक पुस्तकमें से बड़ी मेहनतके साथ कुछ उद्धरण एकत्रित करके उनको छपवाकर बाँटा है। उनमें बतलाया गया है कि अन्य देशोंके लोगों के घरोंमें प्राचीन कालमें चरखेका क्या स्थान था। मैं उन्हींको थोड़ा संक्षिप्त करके उद्धृत करता हूँ :[१] ऊपरके उद्धृत अंशोंको पढ़ने के बाद केवल ऐसे ही लोग चरखेकी शक्तिसे इनकार करेंगे जिनके दिमागों में कुछ पूर्वग्रह जमे हुए हैं— अवश्य ही हम यह मानकर चल रहे हैं कि मूल संग्रह में लिए गये वक्तव्य प्रामाणिक हैं। सबसे अधिक गलत यह एक धारणा बैठी हुई है कि चरखा कातनेवालेको बहुत कम मजदूरी मिलती है। यदि हम इसे अपनी दृष्टिसे न देखकर भूखसे मरते हुए करोड़ों लोगोंकी दृष्टिसे देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि जिसे हम बहुत कम समझते हैं, वह उन गरीबोंके लिए एक बड़ी रकम है। यह भी मालूम हो जायेगा कि करोड़ों लोग तो अपनी रोजानाकी आमदनी में केवल कुछ पैसे ही जोड़ सकते हैं और उनकी दैनिक आय कुछ पैसे रोजसे अधिककी नहीं होती है। यह सालमें अधिक से अधिक ४० रुपये अर्थात् रोजाना सात पैसे हो पाती है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-६-१९२६

५७. भारत सेवक समाज सहायता-कोष

श्रीयुत शास्त्रीने[२] जनतासे नीचे लिखी अपील की है। मैं इसे प्रसन्नता से प्रकाशित करता हूँ :[३]

आर्य भूषण प्रेस और ज्ञान प्रकाश प्रेसमें आग लगनेसे ये दोनों नष्ट हो गये और इससे भारत सेवक समाजको भारी हानि उठानी पड़ी।··· इस मुख्य आधारसे वंचित होनेपर इस संकटकालमें समाजके सदस्योंके सम्मुख एक ही मार्ग रह गया है कि वे अपने देशवासियोंसे रुपयेकी तत्काल और उदारतापूर्ण सहायता माँगें। सभी ओरसे लोग सहायता भेज रहे हैं और सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं और जो लोग सार्वजनिक मामलोंमें हमसे प्रायः

  1. १. यहाँ नहीं दिये गये हैं। उनमें आफ्रिका, यूरोप, एशिया और दक्षिण अमेरिका इत्यादि विभिन्न देशों में कताई उद्योगका स्थान दर्शाया गया है।
  2. २. श्रीनिवास शास्त्री।
  3. ३. अंशत: उद्धृत।