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पत्र : नानाभाई भट्टको

स्थावर सम्पत्तिको उसमें सम्मिलित कर लेनेमें कोई आपत्ति नहीं देखता। मैं तो समझता हूँ कि आपकी गफलतसे जो नुकसान होगा आपपर उसीको पूरा करनेकी जवाबदेही होगी; दूसरी तरहके नुकसानको पूरा करनेकी नहीं। आपके साथ काम करनेवाला एक और व्यक्ति होना चाहिए, यह तो मैं भी मानता हूँ। ऐसा मनुष्य किन शर्तोंपर रखा जाये, इसपर हमें विचार करना होगा। हमें मान लेना चाहिए कि ईश्वरकी कृपासे वर्षा अवश्य होगी चौमासेमें क्या-क्या काम होगा अथवा हो सकता है, इस बातका विचार करके मुझे लिखें। भाई माणिकलाल और छगनलालके साथ खादीके सम्बन्ध में आप स्वयं ही बातचीत करें तो ज्यादा अच्छा होगा। उनके पास ऐसी कितनी खादी होगी? यदि ज्यादा हो तो उसपर विचार करनेकी आवश्यकता होगी। भाई विजयशंकर जो खादी बेचते हैं, उसे वे किसके नामपर बुनवाते हैं? उन्होंने कितनी खादी बुनवाई है? वे तो राज्यकी ओरसे हाणोदमें नियुक्त हैं न? खादीकी प्रवृत्तिका एक ही उद्देश्य है। हिन्दुस्तान में करोड़ों लोगों के पास खेतीके अलावा और कोई धन्धा नहीं है। खेतीसे करोड़ों लोगोंको पूरी आजीविका नहीं मिल सकती। और खेती में उनका पूरा समय भी नहीं खपता। उनके पास कोई पूरक धन्धा होना ही चाहिए और वह वन्धा हाथ कताई है। इसीलिए हम सभी जगह उसका प्रचार कर रहे हैं और इसीलिए उससे तैयार होनेवाली खादी कताई-प्रचारका एक अंग है। कातने, पींजने और बुननेवालोंके बहुतसे छल-कपटको हम बरदाश्त कर लेते हैं; परन्तु जब वे बरदाश्त करने की स्थितिसे आगे बढ़ जायें तब हम उनसे काम लेना बन्द कर देते हैं। उन्हें निष्कपट बनानेका वही मार्ग सही है जो तुमने लिखा है। हमें स्वयं निष्कपट अर्थात् पवित्र, त्यागी और उद्यमी बनना चाहिये।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६३४) की माइक्रोफिल्मसे।

५५. पत्र : नानाभाई भट्टको

आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ सुदी १३, १९८२, २३ जून, १९२६

भाईश्री ५ नानाभाई,

इसके साथ भाई गोकुलभाईका पत्र भेज रहा हूँ। इससे मेरी समझमें कुछ नहीं आता। जब वल्लभभाई आयेंगे तब उनसे बातचीत अवश्य करूंगा। आपकी अपनी जो राय हो, सो बतायें। यदि हम अनुमति देना भी चाहें तो क्या समितिकी बैठक किए बिना दे सकते हैं।

द्वारा राष्ट्रीयशाला
बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६३५) की माइक्रोफिल्मसे।