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५१. पत्र : वी० ए० सुन्दरम् को

आश्रम
साबरमती
२३ जून, १९२६

प्रिय सुन्दरम्,

तुमने तमिल भजन इस तरह भेजे कि मुझे ऐन मौन दिवसको मिल गये। यह तुम्हारा बड़ा सौजन्य है। मैंने उनको काफी आसानीसे पढ़ लिया और इसमें तुम्हारे अनुवादसे भी बहुत मदद मिली। भजन ऐसे लगते हैं मानो 'भगवतगीता' के श्लोकोंका या 'बाइबिल' की पंक्तियोंका छायानुवाद किया गया हो।

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३१९२) की फोटो-नकलसे।

५२. पत्र : नाजुकलाल नन्दलाल चोकसीको

आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ सुदी १३, १९८२, २३ जून, १९२६

भाईश्री नाजुकलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें और मोतीको[१] मेरे पिछले पत्रका उत्तर अभी देना हो

है, तुम्हें इस बातका ध्यान है न? मगनभाईके बीमार पड़ जानेके कारण "आश्रम समाचार" पिछले सप्ताह प्रकाशित नहीं हुआ था। बहुत करके इस सप्ताह प्रकाशित होगा। भाई लक्ष्मीदासके[२] समाचार लगभग नित्य ही मिल जाते हैं। केवल आज ही उनका पत्र नहीं आया है। उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है। उन्हें वहां बुखार नहीं आता। वे अच्छी तरह घूम-फिर भी लेते हैं। आनन्दीको[३] दो दिन बुखार आया था, किन्तु अब ठीक है। मोतीसे कहना कि वह आलस्य छोड़े और मुझे पत्र लिखे।

  1. १. नाजुकलालकी पत्नी।
  2. २. लक्ष्मीदास आसर, मोतीके पिता।
  3. ३. नाजुकलालकी साली।