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५०. पत्र : एस्थर मेननको

आश्रम
साबरमती
२३ जून, १९२६

रानी बिटिया,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरी फिनलैंडकी बहुचर्चित यात्राके सम्बन्ध में अबतक तुमको सारी बातें मालूम हो गई हैं। मुझे ऐसा लगा कि वहाँ जानेका उपयुक्त समय अभी नहीं आया है। मुझे कोई निश्चित और स्पष्ट प्रकाश नहीं दिखा। निस्सन्देह यदि मैं फिनलैंड जाता, तो डेनमार्क भी अवश्य जाता। मैं ऐन मेरीको इसका निश्चित वचन दे चुका था और तब तुम्हारा घर भी देखना चाहता; लेकिन ऐसी भवितव्यता नहीं थी। मीराबहन बिलकुल अच्छी है और बहुत अच्छी तरह यहाँकी गर्मी बरदाश्त कर रही है। खुशी की बात है कि तुमको एक सहायक मिल गया है। तुमने अभीतक मुझे यह नहीं बताया कि तुम्हें पुरानी खादी किस किस्मकी और कितने गज भेजी जाये। लेकिन मगनलालने एक पार्सल बना दिया है। यह आज तुम्हारे दिये हुए 'क्रेगलिया' के पतेपर भेजा जा रहा है। मैं समझता हूँ कि 'क्रेगलिया' शायद कोडाईकनाल सदनका नाम है। बीमारोंकी सेवा-सुश्रुषा करना मेननके स्वभावके सर्वथा अनुरूप ही है। तुमने जिन दस रुपयोंका उल्लेख किया है, वे अभीतक यहाँ नहीं मिले हैं। कुछ भेजनेकी जरूरत भी नहीं है।

तुम्हारा,
बापू

श्रीमती एस्थर मेनन

'क्रेगलिया'

कोडाईकनाल

माई डियर चाइल्ड तथा राष्ट्रीय अभिलेखागारमें सुरक्षित अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकलसे।