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४९. पत्र : विष्णु करन्दीकरको

आश्रम
साबरमती
२३ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

सहपत्रों सहित आपका पत्र मिला। सहपत्र मेरे कामके नहीं, क्योंकि आप जानते ही हैं कि 'यंग इंडिया' कोई समाचारपत्र नहीं है। एक मित्रने इसे विचारपत्र कहा है और उसका यह कहना उपयुक्त ही है। इसलिए मैं उसमें आपकी टिप्पणियोंको स्थान नहीं दे सकता। इसके लिए तो मुझे पत्रका पूरा स्वरूप ही बदलना पड़ेगा; और मुझे ऐसा तो अवश्य ही नहीं करना है।

मैंने सत्याग्रह आश्रमके प्रबन्धकसे कहा है कि यदि उपलब्ध हों तो वे आपको आश्रमके कुछ चित्र भेज दें। इनका पैसा भेजनेकी जरूरत नहीं। आपने मेरे हालके जितने भी चित्र देखे होंगे, वे सभी अकस्मात् लिये हुए हैं। मैंने पिछले दस वर्षोंमें किसी भी फोटोग्राफरसे खास तौरपर अपना चित्र नहीं खिंचवाया है।

मैं इसका प्रबन्ध कर दूंगा कि 'यंग इंडिया' की एक प्रति निःशुल्क आपको नियमित रूपसे मिलती रहे। मैं अपने लेख लगभग हमेशा पत्र छपनेके आखिरी दिन ही लिखा करता हूँ और प्रकाशनकी तिथि इस प्रकार रखी जाती है कि पत्र उस सप्ताह जानेवाली यूरोपकी डाकमें भेजा जा सके। इसलिए मेरे लिए आपको अपने लेखोंकी अग्रिम प्रति भेजना सम्भव नहीं।

विष्णु करन्दीकर

६१, फ्लीट स्ट्रीट

लन्दन, ई० सी० ४

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०७७३) की फोटो-नकलसे ।