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४३. पत्र : वी० वी० दास्तानेको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय दास्ताने,

आपका पत्र मिला। कौंसिलको बैठक २६ तारीखको होगी, २२ को नहीं। यह कौंसिलकी पहली बैठक नहीं है। कई बैठकें हो चुकी हैं।

क्या आपने जो स्मरण दिलाया है, वह २ हजार गज सूत सम्बन्धी शर्त या नियममें परिवर्तन किए जानेके बारेमें है? यदि हाँ, तो मेरा खयाल है कि नियमोंसे छेड़छाड़ करनेका समय अभीतक नहीं आया है। यद्यपि मैं आपकी इस रायसे सहमत हूँ कि यदि हम २,००० गज सूत और नित्य आधा घंटा कातनेकी बात तय कर लें तो अच्छा हो। मेरा खयाल है कि अनेक सदस्योंपर बहुत-सा सूत बकाया है। अनियमितता हमारे जीवनका अभिशाप है।

यद्यपि मैंने आपके ५०० रु० कर्ज लेनेकी बातका जिक्र नहीं किया है, तथापि यह बात नहीं कि मैंने उसके बारेमें पूछताछ न की हो। शंकरलालसे मालूम हुआ है कि जमनालालजी कोषकी रकमको अन्य मदोंमें खर्च किये जानेके पक्षमें नहीं है। आप उन्हें पत्र लिखें। २६ तारीखको उनके यहाँ पहुँचनेकी सम्भावना है।

आपका,

श्रीयुत वी० वी० दास्ताने
जलगाँव

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११९२) की माइक्रोफिल्मसे।

४४. पत्र : तीरथराम तनेजाको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। धन्यवाद। मेरा खयाल है कि विलायती रंगोंको इस्तेमाल करने में बहुत कुशलताकी जरूरत नहीं पड़ती। क्या यह बात सच नहीं कि विलायती रंगोंकी लोकप्रियताके कारणोंमें से एक कारण यह भी है कि उनको बड़ी सुविधाके साथ काममें लाया जा सकता है? इसलिए वे लोग, जिन्हें विलायती रंग इस्तेमाल करनेकी जरूरत रहा करती है, उन्हें प्रयोगमें लाते ही रहे हैं। परन्तु अखिल भारतीय