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पत्र : मुहम्मद शफीको

सम्बन्धी मतभेद तो यदा-कदा ही उपस्थित होते हैं। आप अपने ही मामलेको ले लीजिए। उसमें किसी भी सिद्धान्तकी बात आड़े नहीं आ रही है। आप खादीकार्यके अपने तरीकेको किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सुझाये गये तरीकेसे बेहतर मानें, यह सम्भव है। परन्तु निःसन्देह इसमें वैमनस्य और झगड़े-बखेड़ेका तो कोई औचित्य नहीं— हां एक बात है— आपकी··· ।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११९५ आर०) से।

३९. पत्र: मुहम्मद शफीको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय शफी साहेब,

आपका लम्बा, दिलचस्प और उम्मीदबख्श खत[१] मिला। आप बिहारमें जो कुछ कर रहे हैं वह बराबर मेरी नजरमें है। आप जो कर रहे हैं सही जानिबमें है। आपने अपने खतमें कुछ ऐसे खयाल जाहिर किये हैं जिनसे दिलको सदमा पहुँचता है। आपने अपने खतने लिखा है कि मुसलमानोंके खिलाफ हिन्दुओंकी कोई साजिश थी। अगर यह बात सही निकले, तो मेरे दिलको बड़ी चोट पहुँचेगी।

मैं यह माने लेता हूँ कि आपके खतके मजमूनके बारेमें राजेन्द्रबाबूसे मशविरा करनेकी मुझे इजाजत है।

अब रही मेरी बात। जिस पल मुझे खुदाका हुक्म मिलेगा कि अब तू अपने घोंवेमें से बाहर निकल, मैं उसी पल बाहर निकल आऊँगा। मैं आज जो कुछ कर रहा हूँ वह काम-जैसा नहीं दिखता, लेकिन फिलहाल तो मेरा वही काम है।

दिलसे आपका,

श्री मुहम्मद शफी

मुजफ्फरपुरवाले

बिहार शरीफ

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११०७३) की फोटो-नकलसे।

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साँचा:Smallres

  1. १. पत्रमें मुहम्मद शफीने बिहारके हिन्दू व मुसलमान कार्यकर्ताओं के बीच किसी प्रकारका समझौता करानेकी अपनी कोशिशोंका जिक्र करते हुए गांधीजीको इस बातकी याद भी दिलाई थी कि ५ और ६ मई, १९२६ को वे उनसे अहमदाबादमें मिले थे। उन्होंने यह भी सूचित किया था कि ८, ९ और १० जूनको छपरामें हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए काम करनेवाले कार्यकर्ताओंकी बैठक हुई थी और 'जनतामें शान्ति कायम करनेके खयालसे' खास-खास हिन्दुओं और मुसलमानोंका एक शिष्टमण्डल बिहारका दौरा भी कर चुका है। शफी साहबने गांधीजीसे कहा था कि अब वह समय आ गया है कि एकता कायम करनेके कामको अधिक उत्साहसे, अधिक बड़े क्षेत्रमें और ज्यादा जाने-माने लोगोंके सहयोगसे किया जाये। (एस० एन० ११०७३)