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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यक्त किये हैं, उससे आप शंकित अथवा भयभीत न हों। अभी हाल ही में मेरे पास इसी ढंगके अनेक पत्र आये हैं; इसलिए मेरे मनमे यह विचार आया कि मैं इस समस्यापर सामान्यरूपसे 'यंग इंडिया' में ही लिखूं।

आपको च० रा०[१] ने जो पत्र लिखा है उसे मैं पढ़ गया हूँ। शंकरलालके बम्बईमें होनेके कारण कल ही उसे देखनेका मौका मिल पाया। रामनाथनके मामलेसे तथा उन्हें दी गई वेतन वृद्धिसे आपका कोई वास्ता है। यह विचार मुझे कभी जमा ही नहीं। इसके विपरीत, शंकरलालने मुझसे कहा था कि आपकी आर्थिक कठिनाइयाँ रामनाथनकी कठिनाइयोंसे पहले की हैं, या कमसे-कम उनकी जानकारीमें वे पहले आ चुकी थीं। खैर कुछ भी हो आपके प्रति मेरा बहुत ऊँचा खयाल है, इसलिए आपके विषयमें यह शंका तो उठ ही नहीं सकती कि आप किसी परिस्थितिका अनुचित लाभ उठाना चाहेंगे।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११९४) की माइक्रोफिल्मसे।

३८. एक पत्र[२]

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आप ऐसा क्यों कहते हैं कि मेरा रवैया देखने में या किसी दूसरी तरहसे भी, आपके अथवा आपके उद्देश्यके प्रति उदासीनताका है? मैंने आपको अपनी कठिनाई बतलादी है। चरखा संघने जो सामान्य विधि निर्धारित कर दी है, मैं उसका पालन किये बिना अर्थ-सम्बन्धी कोई कदम नहीं उठा सकता। यदि चरखा संघ-कोषमें से मैं कोई रकम किसी व्यक्ति या संस्थाको अपने मनसे दे दूं, तो समूचा संगठन अव्यवस्थित हो जायेगा। इसलिए निवेदन है कि आप सतीशबाबूपर अविश्वास न करें, बल्कि जैसा वे कहें वैसा करें। ऐसा करनेसे अन्ततः आपको जिन-जिन सुविधाओंकी

आवश्यकता है, वे सब सुलभ हो जायेंगी। सतीशबाबूपर विश्वास न रखनेका कारण क्या है? आपने जो दो पत्र मुझे भेजे हैं, वे काफी स्पष्ट हैं। परन्तु यदि आपकी उनसे न पटती हो तो आप अभय-आश्रम में काम करने लगें। यदि हमें खादीके कामको निकट भविष्य में किसी महान सफल कार्यके रूपमें देखना है, और ऐसा होना ही चाहिए— तो हमें मिलजुलकर काम करना सीखना चाहिए। इसकी खातिर हमें अपने विचारोंको अहं और अपनी रुचियोंको आड़े नहीं आने देना चाहिए। सिद्धान्त

  1. १. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी।
  2. २. यह पत्र किसे लिखा गया था यह ज्ञात नहीं है।