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पत्र: एन० एस० वरदाचारीको

अब केशूके बारेमें। मैंने मगनलालकी[१] ओरसे नहीं लिखा था। आजकल जो लोग मेरी परिचर्यामें रहते हैं, चूँकि केशू उनमें से एक है इसलिए वह मुझे सब बातें बता देता है। मुझे मालूम नहीं कि मगनलालको यह विदित भी है या नहीं कि मैं केशूके बारेमें आपसे पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। ऐसा नहीं कि उसे यह बताना जरूरी ही न हो; लेकिन हम सब लोग यहाँ इतने व्यस्त रहा करते हैं कि हमें और बातें करनेका अवसर ही नहीं मिल पाता। हमें केवल जरूरी बातें करनेका समय ही मिल पाता है। और चूंकि केशूकी शिक्षा-दीक्षाके बारेमें मगनलालसे सलाह-मशविरा करना ऐसा जरूरी नहीं है, इसलिए जिस योजनाको मैं तैयार कर रहा हूँ उसके बारेमें मैंने उससे बात नहीं की। परन्तु मगनलाल इतना जरूर जानता है कि केशूके मनमें यान्त्रिक ज्ञान सम्बन्धी अपनी योग्यता बढ़ानेकी बड़ी इच्छा है। क्या मैसूर राज्यमें तकनीकी शिक्षाका कोई प्रतिष्ठान है? यदि है तो क्या आप उसके बारेमें कुछ जानते हैं? क्या आपके प्रान्तको वह संस्था ही आपकी निगाहमें भारतकी सर्वश्रेष्ठ संस्था है? इस बातके उत्तरके साथ-साथ यह भी लिखनेकी कृपा कीजियेगा कि आपकी संस्था में वर्षमे सत्र होते हैं अथवा आपकी संस्था भरतीके लिए बारहों महीने खुली रहती है और विद्यार्थीगण जब भी प्रवेशके लिए आ जाते हैं, उनको भरती कर लिया जाता है?

हृदयसे आपका,

डॉ० पट्टाभि सीतारमैया
मसूलीपट्टम

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० २०९४९) की फोटो-नकलसे।

३७. पत्र : एन० एस० वरदाचारीको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय वरदाचारी,

आपका पत्र मिला। बड़ी राहत मिली। मैं जानता हूँ कि आपका संकल्प आपकी कठिनाइयाँ दूर करेगा। वेतन वृद्धिका प्रश्न तो कोई मुख्य प्रश्न नहीं। वह तो एक गौण-सा प्रश्न है। जिस आशयका पत्र आपने भेजा है मेरे पास उसी आशयके बहुत से पत्र आये हैं; उनसे उत्पन्न होनेवाले प्रश्नोंके बारेमें मैंने अपने विचार जिस रीतिसे

  1. १. तकनीकी शिक्षाके बारेमें गांधीजी द्वारा लिखी बातको डा० सीतारमैथाने गलत समझकर मगनलाल गांधीके प्रतिभापूर्ण मस्तिष्ककी सराहना करते हुए कहा था कि कारखानेके अनुभवसे वह और भी तीक्ष्ण हो जायेगा। देखिए “ पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको ", २२-६-१९२६ ।