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३५. पत्र : डॉ० दलालको

आश्रम
सोमवार, २१ जून, १९२६

भाईश्री,

आज गिरधारीने लिखा है कि उसे [ अस्पतालसे ] छुट्टी मिल गई। इसलिए क्या मैं दो शब्द लिखकर आपको धन्यवाद दूँ? मैं जानता हूँ कि इससे उपकारकी कीमत कम होती है। आप और मैं दोनों ही कामकाजी मनुष्य हैं। इससे आपका समय नष्ट होता है। आपकी इस सेवाका बदला तो एक हदतक ये युवक और मैं कदाचित् जीवनपर्यंत देशसेवामें जुटे रहकर ही चुका सकते हैं। आपकी सादगीके बारेमें देवदासने मुझे बहुत-कुछ बताया है और उससे मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

डॉ० दलाल

चौपाटी

बम्बई

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९१९) को माइक्रोफिल्मसे।

३६. पत्र : पट्टाभि सीतारमैयाको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय डॉ० पट्टाभि,

आप जानते हैं कि इस महान् दुःखमें मुझे आपसे हार्दिक सहानुभूति है।[१] सुदक्षिणाके देहावसानके बारेमें मुझे कुछ भी पता नहीं था। यद्यपि उस लड़कीका चेहरा मुझे याद नहीं रहा; किन्तु इतना तो भलीभाँति याद है कि उसने मुझे हाथकी चूड़ियाँ प्रसन्न मनसे दे दी थीं। जैसे ही सम्भव हो, आप अवश्य आश्रम आयें और कुछ समय हम लोगोंके बीच बितायें।

  1. १.गांधीजीके एक पोस्टकार्ड के उत्तरमें पट्टाभि सीतारमैयाने अपनी आठ वर्षीय पुत्रीको मृत्युका समाचार दिया था और यह भी लिखा था कि जब वह लड़को ३ वर्षकी थी तब उसने गांधीजीको सार्वजनिक कार्यके लिए अपनी चूड़ियाँ दी थी। (एस० एन० १०९३५