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पत्र : तुलसीदासको

मैं चंगा हूँ। देवदास मसूरीमें लालजीके पास है और बीमारीसे आई हुई उसकी कमजोरी दूर हो रही है। जमनालालजी तथा लक्ष्मीदासभाई भी वहीं हैं। शायद जमनालालजी यहाँ २६ ता० को आ रहे हैं। 'इंडियन रिव्यू' में प्रकाशित कविता पढ़ी थी। क्या अब तुम पहलेसे अधिक स्वस्थ हो? मेरा खयाल है कि तुम इस बातको जानते हो कि तुलसी मेहर नेपालमें बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। मथुरादास अस्वस्थता के कारण डाक्टर मेहताके आदेशपर पंचगनी गये हुए हैं। प्यारेलाल उन्हींके पास है।

तुम्हारा,

श्रीयुत कृष्णदास

द्वारा श्री एस० सी० गुह

दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६२५) की माइक्रोफिल्मसे।

३४. पत्र : तुलसीदासको

आश्रम
सोमवार, २१ जून, १९२६

भाईश्री तुलसीदास,

गिरधारीने लिखा है कि उसे भी [ अस्पतालसे ] छुट्टी मिल गई है। इसलिए अब मेरा कुछ लिखनेका मन होता है। क्या मैं आपका उपकार मानूँ? मेरे साथियोंके प्रति आपने जो स्नेह व्यक्त किया है, हममें से कोई भी उसका अधिकारी न था, यह बात मैं अच्छी तरह समझता हूँ। मैं ऐसे स्नेहका बदला कैसे चुका सकता हूँ? यदि ये युवक और मैं जीवनपर्यंत देशसेवामें रत रह सकें तो उससे कुछ सन्तोष होगा। ईश्वर आपका भला करे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

सर हरकिशनदास अस्पताल

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९१८) की माइक्रोफिल्मसे।