पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/६४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह हर चरखा प्रेमीके लिए अनुकरणीय है। इस खादी-सेवकमें त्याग है, निश्चय है, अपने शास्त्रका ज्ञान है, विवेक है और नम्रता है। ये गुण जिसमें हों उसे दूसरी सम्पत्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २०-६-१९२६

३३. पत्र : कृष्णदासको

आश्रम
साबरमती
२० जून, १९२६

प्रिय कृष्णदास,

बहुत इन्तजारके बाद, आखिर तुम्हारा पत्र आ ही गया। फिनलैंड[१] न जानेके मेरे निर्णयसे मुझे निश्चय ही बड़ी राहत और शान्ति मिली। वहाँ जानेका लालच तो जबर्दस्त था, परन्तु मुझे ऐसा लगा कि यह निमन्त्रण ऐसा नहीं है जिससे भारतसे बाहर जानेका उत्साह पैदा हो। यदि मैं जाता भी तो मैं वहाँ अपना राजनीतिक सन्देश न सुनाता; बल्कि वहाँके विद्यार्थी समाजके साथ सम्पर्क स्थापित करता और उनसे नीतियुक्त जीवन व्यतीत करनेकी बात ही कहता। मुझे शुरू-शुरूमें वहाँ जानेका मोह इसीलिए हुआ था। परन्तु जब मुझे यह मालूम हुआ कि निमन्त्रण स्वयं-स्फूर्त न होकर किसीके सुझावपर भेजा गया है, तब मैंने सोचा कि मेरे हृदय में जानेकी इच्छा उत्पन्न कर सकने योग्य निमन्त्रण नहीं है। मैं गुरुजीकी[२] इस रायसे पूर्णतया सहमत हूँ कि जबतक किसी व्यक्तिका अपने आसपासके वातावरण में ही प्रभाव न हो तबतक देशके बाहर जानेसे कोई लाभ न होगा। अपने घरमें सफल हो जानेपर ही अन्यत्र सफल होनेकी आशा की जा सकती है।

अपने खयालसे तो मुझे इस बातका बहुत दुःख है कि तुम फिलहाल कुछ अर्से तक यहां नहीं आ सकोगे; लेकिन अपने गुरुजीकी सेवाके उद्देश्य और माताके इच्छा करते ही वहाँ उपस्थित हो सकनेके खयालसे तुमने वहाँ रुके रहनेका जो निर्णय किया है, वह ठीक है। जब कभी तुम्हें रुपयोंकी जरूरत पड़े, संकोच छोड़कर मुझे लिख भेजना।

  1. १. ६ अप्रैल, १९२६ को के० टी० पालने गांधीजीको 'यंग मैन्स क्रिश्चियन एसोसियेशन' की ओरसे फिनलैंडमें स्थित हेलसिंगफोर्समें अगस्तमें होनेवाले अखिल विश्व सम्मेलन में शामिल होनेके लिए निमन्त्रित किया था। काफी पत्र-व्यवहार के बाद अन्तमें गांधीजीने यह कहकर वहाँ जाना अस्वीकार कर दिया था कि अभी मेरे लिए देशके बाहर जानेका समय नहीं आया है। देखिए खण्ड ३०, पृष्ठ ५८२ ।
  2. २. सतीशचन्द्र मुकर्जी।