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नेपालमें यज्ञ-चक्र

है। इसलिए शराबकी बुराईको दूर करनेके लिए जो भी योग्य कदम उठाये जा सकते हैं, मैं उन्हें उठानेके लिए अधीर हूँ। किन्तु हमारी मजबूरी इतनी अधिक है कि हम शराबबन्दी-जैसे अच्छे कार्यों में भी जल्दी कुछ नहीं कर सकते। यदि मैं लोगोंको अहिंसापर दृढ़ रहने की बात समझा सकूँ तो आज ही फिर शराबकी दूकानों-पर धरना देनेका आन्दोलन शुरू कर दूं। किन्तु आज तो ऐसा जान पड़ता है मानो हम तलवारकी ताकतको ही पूजते हों। ऐसी स्थिति कोई आशु उपाय काममें लाने की हिम्मत नहीं होती।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २०-६-१९२६

३१. सूरतमें खादी

जहाँ-जहाँ खादीकी बिक्री के लिए फेरी लगाई जा रही है वहाँ सब जगह वह सफल होती दिखाई देती है। भाई भरुचा लिखते हैं :[१]

मेरा दृढ़ विश्वास है कि अन्य सब स्थानोंपर भी सुरतके समान ही हो सकता है। आवश्यकता केवल परिश्रम और कौशलकी है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २०-६-१९२६

३२. नेपालमें यज्ञ-चक्र

अगर चरखा यज्ञका साधन हो, यदि वह इस युग और देशकी सभी जातियों और सब वर्णोंके लिए यज्ञ (कुरबानी) हो तो उसे यज्ञ-चक्रकी संज्ञा देनेमें कोई त्रुटि नहीं है। नीचे दिया गया पत्र पढ़नेपर यह नाम सहज ही लेखनीसे निकल

गया। पत्रलेखक[२] एक नेपाली आश्रमवासी हैं। उसे आश्रम में दाखिल होनेके लिए बहुत तपश्चर्या करनी पड़ी थी। उसने चरखा-शास्त्रका अभ्यास भलीभाँति करके नेपालमें जाकर वहाँके गरीबोंमें चरखेका प्रचार करनेका निश्चय किया है। उसे वहाँ पहुँचे अभी करीब तीन माह हुए होंगे। इस बीचमें उसने जो काम किया है उसके बारेमें उसने मुझे हिन्दी में निम्न पत्र लिखा है:[३]

  1. १. यहां नहीं दिया जा रहा है। पत्रलेखकने लिखा था कि उन्होंने साढ़े तीन दिन फेरी लगाकर २,८०० रुपयेको खादी बेची है।
  2. २. तुलसी मेहर।
  3. ३. पत्र यहीं नहीं दिया गया है।