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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी भी अन्य धर्मशास्त्र के सिद्धान्तोंके साथ ऐसे भोजोंका कोई मेल नहीं बैठता और इनसे होनेवाली हानियाँ तो हमें स्पष्ट नजर आती हैं। प्रत्यक्ष प्रमाणोंके सामने संस्कृत भाषामें लिखे गये श्लोकोंका क्या उपयोग हो सकता है? मरणके पीछेके भोजको बुद्धि भी कबूल नहीं करती, हृदय भी कबूल नहीं करता और न वैसा अन्य देशों में ही कहीं देखा जाता है। ऐसे भोजोंको असभ्यता माना जाये, इसके लिए इससे अधिक कारण मेरे पास नहीं हैं। और किसीके पास होंगे ऐसी आशा भी नहीं रखी जा सकती। जैसे प्राचीन सब बुरा ही है ऐसा माननेवाले भूल करते हैं, वैसे प्राचीनको साधु माननेवाले भी भूल करते हैं। प्राचीन हो या अर्वाचीन, सब बातें बुद्धिकी कसौटीपर जाँची जानी चाहिए। जो बातें उसपर खरी नहीं उतर पाती उनका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।

शराबकी दूकानें और पारसी

उस लेखकने तो मुझे दुहरा अवसर दिया है। यद्यपि मैं प्रायः शराबके सम्बन्धमें नहीं लिखता फिर भी मेरा विश्वास शराबबन्दीमें कम नहीं है। इस पत्रके कारण एक तो मुझे यह बतानेका अवसर मिला और साथ ही इसका उत्तर देते हुए एक भ्रम भी दूर किया जा सकता है। इस भ्रमको दूर करने की बात ही पहले लें। मैंने यह कभी नहीं कहा कि केवल पारसी ही शराबके ठेके छोड़ें। मेरी मान्यता तो यह है कि सभी जातियोंके लोगोंको शराबको बिक्रीसे होनेवाला आर्थिक लाभ छोड़ देना चाहिए। ईमानदारीसे रोजी कमानेके ऐसे दूसरे बहुतसे साधन हैं जिनपर कोई आपत्ति नहीं कर सकता। यदि कोई इन धन्धोंको छोड़कर शराबके धंधेमें लगता है तो मुझे अवश्य ही उससे दुःख होता है। यदि मेरे हाथमें सत्ता हो तो भारतमें शराबकी एक भी दूकान न रहे। शराब पीना कोई हक नहीं है; इसलिए शराब बन्दी करनेसे लोगोंका हक छीने जानेका कोई भय नहीं है। चोरीका धन्धा जितना बड़ा अपराध है, शराब बेचनेका धन्धा करना भी उतना ही बड़ा अपराध है। माना ऐसा ही जाना चाहिए। यदि मैंने पारसी भाइयोंको सम्बोधन करके लिखा है तो इसका

इतना ही अर्थ है कि वे अधिक समझदार हैं। मैं उनसे अधिक अपेक्षा करता हूँ। किन्तु ऊँचा या नीचा कोई भी हिन्दू अथवा किसी भी अन्य सम्प्रदायका व्यक्ति शराब बेचनेका धन्धा करे, मैं उसका समर्थन कर ही नहीं सकता। अब हम पहले प्रश्नपर आते हैं। मैंने शराबकी बुराईके सम्बन्धमें जो विचार १९२०—२१ में व्यक्त किये थे, वे आज भी ज्यों-त्यों कायम हैं। मैं ज्यों-ज्यों विचार करता जाता हूँ और ज्यों-ज्यों अवलोकन करता जाता हूँ मुझे त्यों-त्यों शराबसे होनेवाली हानियाँ अधिकाधिक भयंकर लगती जाती हैं। कितने ही अपराधोंका मूल कारण मद्यपान होता

  1. १. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्रलेखकने लिखा था कि पारसियोंका खयाल है कि आप पारसियोंसे शराबकी दूकानें बन्द करनेका अनुरोध करते हैं किन्तु हिन्दुओंसे ऐसा नहीं कहते और जब पारसी शराबकी दूकानें छोड़ देते हैं तो हिन्दू उन्हें ले लेते हैं। मेरी प्रार्थना है कि आप इस सम्बन्ध में अपना विचार बतायें।