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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगा; परन्तु यदि दिमागकी कमजोरीके कारण ही शरीर कमजोर रहता है तो तुम्हारे तन्दुरुस्त होनेका मार्ग यही है कि तुम ईश्वरपर तथा स्वस्थ करनेकी उसकी क्षमतापर विश्वास रखो।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीमती शान्तिसुधा घोष

द्वारा श्री के० एन० घोष, एम० ए०

अलीकोंडा (बारीसाल)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६२४) की फोटो-नकलसे।

२८. पत्र : गंगाबहन मजमूदारको

१९ जून, १९२६

पूज्य गंगाबहन,

आपका पत्र मिला। आपके लगाये गये आरोप और आपकी भाषा ऐसी नहीं कि उनका उत्तर दिया जाये। किन्तु चूंकि आप पंच नियुक्त करनेकी बात स्वीकार करती हैं, अतः पंचनामा तो होना ही चाहिए; लेकिन लगता ऐसा है कि पंचनामा लिखे जानेमें भी विघ्न आयेंगे। फिर भी अगर आप पंचनामा मेरे पास भेजेंगी तो मैं उसपर विचार कर सकूँगा। ऐसा लगता है कि इस बारेमें आपको किसी वकीलकी सलाह लेनी पड़ेगी।

गुजराती प्रति (एस० एन० १०९४२) को माइक्रोफिल्मसे।

२९. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ शुक्ल ९ [१९ जून, १९२६][१]

भाई घनश्यामदासजी,

सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीको जो नुकसान पहुंचा है यह आप जानते ही हैं। श्रीनिवास शास्त्रीजीने इस बारेमें भिक्षा मांगनेका मुझको भी कहा है। ऐसा कहनेका उनको अधिकार है। मैंने 'यंग इंडिया' में तो लिखा हि है परंतु शास्त्रीजी

चहाते हैं मैं मित्रवर्गको भी लिखुं यद्यपि सोसाइटीकी राजनैतिक काररवाईको में

  1. १. सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (भारत सेवक समाज) को नुकसान पहुँचनेके उल्लेखसे यह पत्र १९२६ में लिखा गया जान पड़ता है। देखिए "भारत सेवक समाज सहायता-कोप", २४-६-१९२६।