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२६. पत्र: डी० एन० बहादुरजीको

आश्रम
साबरमती
१९ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

नरगिसबहनने मेरे पास आपका काता हुआ सूत परीक्षार्थ भेजा है। वह खराब तो था ही नहीं। उसकी मजबूती ५०के लगभग और उसकी इकसारता ४० से ऊपर थी। नौसिखियेके लिए और एक बैठकमें कई घंटे चरखा न चलानेवालेके लिए यह बहुत अच्छी शुरुआत है। मैं चाहता हूँ कि आप मजबूती ७० तक ले जाइए। सूतकी इकसारता ४५ से ऊपर होनी चाहिए। अभीतक मजबूती ७९ तक और इकसारता ४९ तक पहुँच पाई है।

आशा है श्रीमती बहादुरजी स्वस्थ होंगी। उनपर मेरे एक पत्रका उत्तर उधार है।

हृदयसे आपका,

श्री डी० एन० बहादुरजी

रिज रोड

मलाबार हिल डा०, बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६२३) की माइक्रोफिल्मसे।

२७. पत्र : शान्तिसुधा घोषको

आश्रम
साबरमती
१९ जून, १९२६

प्रिय बहन,

तुम्हारा पत्र मिला। यह कहना निश्चय ही गलत है कि १९ वर्षको अवस्थामें कोई लड़की अपने जीवनके तौर-तरीकेमें परिवर्तन करना और आत्मसंयमसे रहना शुरू नहीं कर सकती। हकीकत यह है कि ये दोनों ही बातें किसी भी अवस्था में की जा सकती हैं— अवस्था ढल चुकनेपर करनेकी बात ही नहीं उठती। जरूरत केवल एक बातकी है। वह है ईश्वरमें पूर्ण विश्वास रखना और आवश्यक परिवर्तन लानेका भार उसीपर छोड़ देना।

मेरा यह विश्वास अवश्य है कि मस्तिष्कका शरीरसे बहुत गहरा ताल्लुक है। यदि तुम्हें शरीर सम्बन्धी कोई रोग व्याप गया है तो उसका इलाज करना उचित