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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खयालके मुताबिक हर हालत में दोनोंकी रजामन्दी होनी ही चाहिए। निश्चय ही राष्ट्रीय कार्यकर्ताओंके लिए मेरी सलाह पूरी तरह संयमशील होनेकी है। परन्तु मैं जानता हूँ कि यह एक आदर्श स्थिति है और इसपर अमल करना आसान नहीं है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्तिको अपनी क्षमता देखकर स्वयं ही अपने बारेमें निर्णय करना चाहिए।

समाजमें अव्यवस्था और किंकर्तव्यमूढ़ता हो और फिर भी यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यका यथाशक्ति पालन करता हो तो उसे निराश होने की जरूरत नहीं है। अगर विद्यार्थी लोग तकनीकी प्रशिक्षण चाहते हैं तो उन्हें बढ़ईगीरी या फिर लुहारगीरी सीखनी चाहिए। उनको सिखानेके लिए यूरोपीय ढंगके साज-सामानसे लैस कोई बड़ा कारखाना दरकार नहीं, बल्कि वे किसी साधारण बढ़ई या लुहारकी देखरेखमें काम सीख सकते हैं। और जब वह हुनर उन्हें बखूबी आ जाये तब वे यूरोपीय ढंगके कारखानोंमें नये तरीकों और औजारों इत्यादिका प्रशिक्षण प्राप्त करके उसमें से जो कुछ आवश्यक हो, उसे हृदयंगम कर सकते हैं। ऐसा प्रशिक्षण कम खर्चीला और अधिक कारगर भी होगा।

मेरा खयाल है कि आप सिर्फ फ़ौरी कामोंकी ओर ध्यान दें। ईमानदारी और एकाग्रता के साथ काम करते रहनेपर सार्वजनिक शिक्षाको व्यवस्था अपने-आप हो जायेगी।

गुजरात विद्यापीठमें कोई गड़बड़ी नहीं है। हाँ, इतना जरूर है कि उसके कुछ ऐसे शिक्षकोंको जो वास्तव में शैक्षणिक कार्यके क्षेत्र में भी असहयोगी नहीं हैं, त्यागपत्र देना पड़ा है।

बाबू रामदास गौड़के बारेमें आपने जो कुछ लिखा है उसे पढ़कर दुःख हुआ। हमें चाहिए कि हम सब लोग बहुत ही विनम्रतापूर्वक उनसे प्रार्थना करें कि वे अपना अनुसन्धान कार्य[१] बन्द रखें। हम उन्हें बढ़ावा न दें।

हृदयसे आपका,

बाबू वीरेन्द्रनाथ सेनगुप्त

बिहार विद्यापीठ

डा० दीघाघाट, पटना

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९४३) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. १. प्रेत-विद्याके सम्बन्ध में।