१९. पत्र: फूलसिंहको
आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ सुदी ८, १९८२ [१८ जून, १९२६ ][१]
आपका पत्र मिला। इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और आपका आभार भी मानता हूँ। आपकी आलोचना मुझे सर्वथा उचित लगी है। बात यह है कि नवजीवन प्रकाशन मन्दिरमें हिज्जोंको सुधारनेके कामपर जितना चाहिए उतना पैसा नहीं लगाया गया है। पुस्तकें निकालने के प्रयत्नमें, जैसे दोष आपने बताये, रह गये हैं। मैंने यह बात अपने बचावमें नहीं लिखी है, वरन् दोषोंपर जोर देनेके हेतुसे लिखी है; क्योंकि मेरी मान्यता यही है कि इस संस्थाकी ओरसे पुस्तकें निर्दोष प्रकाशित की जानी चाहिए। मैं इस बारेमें स्वामीसे विस्तारके साथ बातचीत करूंगा। आपने जो भी अशुद्धियाँ देखी हों, उनका शुद्धिपत्र बनाकर मुझे भेज दें।
मोहनदासके वन्देमातरम्
मार्फत चरोतर शिक्षा मण्डल
गुजराती पत्र ( जी० एन० २८८) की फोटो-नकलसे।
२०. पत्र : देवदास गांधीको
आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, ज्येष्ठ सुदी ८ [ १८ जून, १९२६][२]
तुमने पत्र न लिखनेकी प्रतिज्ञा कर ली जान पड़ती है। बम्बईसे तो तुम नियमसे पत्र भेजते रहते थे; किन्तु तुमने मसुरीसे सारे आश्रम के लिए एक ही पत्र भेजा है। आलस छोड़ दो। यदि जमनालालजी २६ तारीखको न आ सकें तो आनेका लोभ