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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लापरवाही और अज्ञानके कारण ही जाते हैं। हमारा उद्देश्य यह दिखाना भी है कि एक बहुत बड़ी संख्या में पशुओंकी रक्षा करनेके प्रश्नकी महत्ता धार्मिकके बनिस्बत आर्थिक ही विशेष है; अथवा यह दिखाना है कि अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्रमें कोई अन्तर्विरोध नहीं है। मैंने तो इससे भी आगे बढ़कर कहा है कि जो धर्म अर्थशास्त्रके मूल सिद्धान्तोंका विरोधी है, बुरा है और इसका उलटा, अर्थात् वह अर्थशास्त्र भी, जो धर्मके मूल सिद्धान्तोंका विरोधी है, उतना ही बुरा है।

खुराकके लिए जानवरोंको काटने की बात छोड़ दें तो भी पाश्चात्य देशोंसे सम्बन्धित अर्थव्यवस्थासे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। यदि राष्ट्र अथवा कहो हिन्दू लोग, पशु-पालनसे कोई आर्थिक लाभ न उठाना चाहें तो यह आत्मत्याग ही पशुओंके निर्वाहके लिए उनके स्वाभाविक जीवनके अन्ततक, जब वे दूध देने और मेहनत करने लायक न रहें तब भी, काफी होगा। हेनरी और मॉरिसनकी 'फीड्स ऐंड फीडिंग' नामक पुस्तककी भूमिकासे उद्धृत किये निम्नलिखित अनुच्छेदोंसे मालूम होगा कि अमेरिकामें गो-धनको किस दृष्टिसे देखा जाता है।[१]

[ अंग्रजीसे ]
यंग इंडिया, १७-६-१९२६

१६. खादीकी फेरी

खादीके सभी महत्त्वपूर्ण केन्द्रों में इस तरहके सराहनीय प्रयत्न किये जा रहे हैं कि उनमें जितनी खादी तैयार होती है वह सब उनके आसपासके क्षेत्रोंमें खप सके। तमिलनाडमें गत मार्चतक डेढ़ सालके अर्सेमें फेरी लगाकर जो खादी बेची गई उसकी रिपोर्टमें से मैं ये अंश दे रहा हूँ।[२] आन्ध्रकी रिपोर्टसे लिये गये निम्न उद्धरणोंसे[३] उस प्रान्तके फेरीवालोंके अनुभव मालूम होते हैं। यह रिपोर्ट १० महीनेके अर्सेकी है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-६-१९२६
  1. १. पशु-पालनसे सम्बंधित ये उद्धरण यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  2. २. यहां नहीं दिये जा रहे हैं। उनमें फेरीवालों द्वारा देहातों और शहरोंमें की गई खादीकी बिक्रीका विवरण दिया गया है और गांवोंमें ज्यादा अच्छे प्रचारकी आवश्यकतापर जोर दिया गया है।
  3. ३. यहां नहीं दिये गये हैं। उनमें कुछ जिलोंमें की गई खादीको बिक्रीके आंकड़े थे।