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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेखकने यह भी दिखाया है कि अधिकांश किसानोंको सालमें सिर्फ चार महीने ही काम रहता है।

क्लर्क, सरकारी अफसर, वकील, डाक्टर, राजनीतिक नेता, शिक्षक और ये सभी लोग जिन्हें अंग्रेजी शिक्षा मिली है, सब मिलाकर भी, सारी आबादीके एक फीसदीके भी बराबर नहीं हैं।

मैं कह चुका हूँ कि लेखकके नतीजे निर्जीव हैं। इस निर्जीवताका मूल कारण यह है कि उन्होंने सभी प्रकारके सम्भावित घरेलू उद्योगोंको इकट्ठा ले लिया है। गिनानेके लिए यह ठीक है। लेकिन इससे वह समस्या तो हल नहीं होती जिसे जल्दी ही हल करना जरूरी है। हममें से बहुतसे लोग और गाँवके काम करनेवाले प्रायः सभी, इतने उद्योगोंको देखकर ही घबरा जायेंगे। उनके लिए तो एक ही सार्वजनिक उद्योग होना चाहिए। अब इनमें से एक-एकको जाँचकर छोड़ते चलें तो हम अन्तमें इसी अनिवार्य नतीजेपर पहुँचेंगे कि अगर करोड़ोंके लिए कोई धन्धा है तो वह चरखा चलाना ही है; दूसरा नहीं। इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे धन्धोंका कोई महत्त्व नहीं है। वे बेकार हैं। सच पूछो तो व्यक्तिगत दृष्टिसे तो दूसरे ही धन्धोंमें इससे अधिक आमदनी है। जैसे, घड़ी बनानेका धन्धा बहुत ही रोचक और आमदनी देनेवाला होगा। मगर आखिर इसमें कितने आदमी लग सकते हैं? क्या यह गाँवके करोड़ों आदमियोंके किसी कामका है? लेकिन अगर गाँवके वे ही आदमी, फिरसे अपने घर आबाद करके अपने पूर्व-पुरुषोंकी तरह रहना शुरूकर अपने बेकार समय का सदुपयोग करने लग जायें तो सभी धन्धे अपने आप ही जी उठेंगे। भूखे लोगोंके आगे तरह-तरहकी कच्ची भोजन सामग्री रखकर उनसे अपने मनकी चीज पसन्द करनेको कहना बेकार है। उनका क्या करें, वे यह सोच ही न सकेंगे, वे सम्भवतः सबसे अधिक लुभावनी चीजपर ही टूट पड़ेंगे और अन्तमें जानसे हाथ धो बैठेंगे। मुझे एक बारकी घटना याद है कि मैं भूखे लोगोंमें भोजन बाँटते समय मरते-मरते बचा था। मुझे पहले अपनी सुरक्षाकी व्यवस्था करके खानेको बन्द जगहमें रखना पड़ा था और मैं तब कहीं उसे बाँट सका था। हम जो बहुत कम प्रगति कर पाते हैं, इसका कारण यह है कि हम लोगोंके सामने धन्धोंकी एक बेतरतीब फेहरिश्त पेश कर देते हैं जब कि हमें जानना यह चाहिए कि सबके लिए केवल कोई एक ही धन्धा सम्भव है। शायद सभी उसे शुरू न करें। जिनमें ताकत हो और इच्छा हो वे बहुत खुशीसे कोई दूसरा धन्धा शुरू करें। किन्तु राष्ट्रकी शक्ति तो केवल कताईके एक ही धन्धेमें लगाई जा सकती है जिसे सभी कर सकते हैं और अधिकांश तो दूसरा कोई धन्धा कर ही नहीं सकते। एक बार देशका ध्यान इस उद्योगके पुनरुद्धारमें लग जानेके बाद हमें खद्दर बेचनेकी फिक्र नहीं करनी पड़ेगी। खद्दरको सर्वप्रिय बनानेके लिए आज जिस शक्ति और घनका उपयोग होता है, तब उनका उपयोग खद्दरको अच्छा बनाने और उसे अधिक तैयार करनेमें होगा। राष्ट्रकी वर्तमान जड़ताके कारण हम खद्दरके लाभोंको नहीं देख पाते और इसीलिए हम राष्ट्रव्यापी बड़े पैमानेपर कोई प्रयत्न नहीं कर पाते। इतना ही कहना काफी