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४९४. दक्षिण आफ्रिकाको

बेचैन और विशाल-आत्मा एन्ड्रयूज इतने प्रफुल्लित और कभी नहीं होते जितने ईश्वरकी खोज करते हुए या यों कहो कि मानव-सेवाके निमित्त यात्रा करते हुए होते हैं। बीमारी उन्हें त्रस्त नहीं करती। यदि कहीं श्रमजीवी कष्टमें होते हैं तो वे उनकी सहायताको दौड़ पड़ते हैं; अगर बाढ़ पीड़ितोंको उनकी मददकी जरूरत होती है, तो वे उनके पास चले जाते हैं—चाहे वे ज्वरसे पीड़ित ही क्यों न हों। प्रवासी भारतवासी उन्हें हर वक्त अपनी मददके लिए तत्पर पाते हैं और अपना विश्वस्त पथप्रदर्शक मानते हैं। उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। जब वे स्टोक्सके फार्ममें थे, तब उनको एक जहरीले कीड़ेने काट खाया था। लेकिन वे वहाँ पूरा आराम लेनेके लिए नहीं रुके; क्योंकि शान्तिनिकेतनमें उनकी आवश्यकता थी। दक्षिण आफ्रिका जानेके पूर्व वे साबरमती आये। वे अच्छे तो पहलेसे ही न थे, यहाँ आकर उनकी तबीयत और भी बिगड़ गई। लेकिन वे दक्षिण आफ्रिकाकी यात्रा मन्सूख कैसे करते? वे अहमदाबादमें आतिथ्यशील श्री अम्बालाल साराभाईके यहाँ ठहरे थे। वहाँ दो चार रोज आराम करने पर उनकी तबीयत कुछ ठीक हुई। हालाँकि वे अब भी कमजोर हैं, तथापि वे दक्षिण आफ्रिकाके लिए रवाना हो गये हैं। जाने से पहले वे एक लेख लिखकर रख गये हैं। यह अन्यत्र छपा है।[१]

यह उनका प्रेमपूरित कार्य ईश्वरकी खोज है। ईश्वरकी आज्ञाके पालनार्थ ही वे वहाँ गये हैं।

वे जानते हैं कि वहाँ जानेसे शायद हाथ कुछ न आये, लेकिन वे तो फकत काम करते हैं तथा उसके लिए मर मिटते हैं; वे तर्क-वितर्क नहीं करते। उनके लिए इतना काफी है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासी उनकी सहायता चाहते हैं और उन लोगोंकी माँग न्यायपूर्ण है। वे उसपर विचार करनेके लिए नहीं रुकते कि काम छोटा है या बड़ा। किसी सत्यानुकूल और न्यायपूर्ण कामको छोटा नहीं मानते। और उनकी निगाहमें कोई भी व्यक्ति जिसे उनकी सेवाकी जरूरत है, तुच्छ नहीं है। ब्राह्मण हो या भंगी, राव हो या रंक, पूंजीपति हो या मजदूर—अगर वह सत्य और न्यायके लिए लड़ रहा है—तो वे सभीकी समान भावसे सेवा करते हैं।

वे नाजुक मिजाज हैं। सदिच्छा रखनेवाले मित्रोंने नम्रतापूर्वक उनकी आलोचना करते हुए कहा कि दक्षिण आफ्रिकासे आये हुए शिष्टमण्डलके हिन्दुस्तानमें रहते हुए उनको यहीं रहना चाहिए क्योंकि प्रवासी भारतवासियोंको तो उनकी आवश्यकता गोलमेज सम्मेलनसे पहले इतनी न होगी। उन्हें इस आलोचनासे पीड़ा हुई और उन्होंने इस आलोचनाका उत्तर अपने उपर्युक्त लेखमें[२] दिया है। शिष्टमण्डलको उनकी दरकार नहीं

  1. देखिए यंग इंडिया, ३०-९-१९२६।
  2. श्री एन्ड्रयूजके लेखका सही शीर्षक 'ईश्वरकी खोज' है। उन्होंने इसमें अपनी दक्षिण आफ्रिकाकी यात्राका, जिसपर वे जा रहे थे, उल्लेख करते हुए लिखा था, मुझे निरुत्साहित करते हुए अभी कई लोगोंने