पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१४. नीलगिरि जिलेमें खादी

नीलगिरी जिलेमें फेरी लगाकर खादी बेची जा रही है। एक धनी जमींदारने खादीका स्टाक रखने और दौरेके दौरान खादीके कार्यकर्ताओंके ठहरनेके लिए अपना बंगला दे दिया है। मालूम हुआ है कि यहाँ नीलगिरीके कृषि उद्यान संघके तत्वावधान में सरकारी वनिस्पति उद्यानमें एक प्रदर्शनी की गई थी। कहते हैं कि प्रदर्शनीके मन्त्रीने जनताको विश्वास दिलाया था कि प्रदर्शनीको विराट् बनानेके विचारसे वहाँ ऐसे प्रदर्शन भी रखे जा सकेंगे जो स्पर्धाके लिए न हों। किन्तु प्रदर्शनार्थ खादी और चरखे रखने के लिए दी गई दस्तका प्रदर्शनीके मन्त्रीने यह उत्तर दिया था कि चूँकि जगह कम है इसलिए प्रदर्शनीमें प्रदर्शनके लिए ये चीजें नहीं रखी जा सकतीं।

यद्यपि यह विश्वास करना कठिन जान पड़ता है कि इस प्रकारका खुला निमन्त्रण देनेके बावजूद कोई मन्त्री खादीको प्रदर्शनीमें रखने से इनकार करनेका बचपना दिखायेगा; फिर भी मुझे जैसी खबर मिली है मैं उसे प्रकाशित कर रहा हूँ। यदि मन्त्री महोदय ऊपर बताये गये आचरणके सम्बन्धमें कोई स्पष्टीकरण देना चाहें, तो मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक प्रकाशित करूंगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-६-१९२६

१५. पशु-धन

श्री वालजी देसाईके 'गाय' विषयक लेखोंको यदि पाठकोंने ध्यानपूर्वक पढ़ा होगा तो उन्हें यह मालूम हुए बिना न रहेगा कि संसारमें भारतके सिवा और किसी भी देशमें, देश या उसके लोगोंके लिए उसके मवेशी भारस्वरूप नहीं होते। और यह भी कि दूसरे देशोंमें अधिकांश लोग इन पशुओंको काट डालने में कुछ भी बुरा नहीं मानते; यही नहीं वे जान बूझकर अनावश्यक पशुओंको काट डालते हैं। इसके सिवाय यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे देशोंमें अनावश्यक पशु होते ही नहीं, क्योंकि वहां पशुओंको काटने के लिए पालते भी हैं। दलीलके तौरपर इसमें बेशक बहुत वजन है। परन्तु इन पृष्ठोंमें इस विषयपर जो कुछ भी लिखा गया है उसका उद्देश्य यही दिखाना है कि भारतके बहुसंख्यक लोग खुराक के लिए पशुओंको नहीं मारेंगे; किन्तु फिर भी यदि वे काफी विचार करें और उनकी अच्छी व्यवस्था करें तो देशके मवेशी देशके लिए भारस्वरूप न होंगे; और उन्हें काटना इतना महँगा बनाया जा सकेगा, जिससे कि सिर्फ वही लोग उनको काट सकेंगे जो कि स्वादके लिए या धर्मके नामपर उनको हलाल करना चाहेंगे । 'यंग इंडिया'के लेखोंका उद्देश्य यही दिखाना है कि आजकल बूचड़खानोंमें जो पशु जाते हैं, वे केवल हमारी अपनी