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४९०. अभिभावकोंकी जिम्मेदारी

एक शिक्षक लिखते हैं:[१]

ऊपरकी बातमें तत्त्व है, इसे तो सभी स्वीकार करेंगे। जब बच्चे बड़े हो जायें, उसके बाद पत्नीसे अथवा पत्नी मर जाये तो दूसरा विवाह करके उससे सन्तानोत्पत्ति करनेमें बच्चोंके मनपर बुरा असर पड़ता है, इसे तो सहज ही समझा जा सकता है। किन्तु यदि पिता आवश्यक संयमका पालन न कर सकता हो तो इतना तो करना ही चाहिए कि वह बड़े बच्चोंको अलग मकानमें रखे अथवा स्वयं ऐसे एकान्त कमरेमें रहे कि बच्चोंके देखने-सुनने में कोई अनुचित बात न आये। इससे शिष्टताका बचाव तो हो ही जायेगा। बाल्यावस्था निर्दोष वातावरणमें बीतनी चाहिए किन्तु माता-पिता विलासके वशीभूत होकर बच्चोंके मनपर खराब छाप छोड़ देते हैं। बालकोंमें नीतिके विकासकी दृष्टिसे तथा उन्हें स्वावलम्बी बनानेके विचारसे वानप्रस्थाश्रमकी रूढ़िका प्रचलन होना चाहिए।

लेखकने शिक्षकोंके सामने जो सुझाव रखा है वह निःसन्देह योग्य तो है किन्तु जहाँ एक-एक वर्ग में चालीससे पचासतक विद्यार्थी हों और शिक्षकका विद्यार्थियोंसे पढ़ाने-लिखानेके सिवाय सम्बन्ध न आता हो, वहाँ यदि शिक्षक चाहे तो भी इतने बहुसंख्यक विद्यार्थियोंके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध कैसे स्थापित कर सकता है। इसके सिवाय जहाँ अलग-अलग छः-सात विषयोंको पढ़ाने के लिए छः-सात शिक्षक हों, वहाँ नीति-शिक्षणकी जवाबदारी कौन उठा सकता है?

अन्तमें ऐसे कितने शिक्षक प्राप्त हो सकते हैं जिन्हें अपने आचरणके बलपर बालकोंको नीतिके मार्गपर आरूढ़ करने अथवा उनका विश्वास प्राप्त करनेका अधिकार हो। इससे समूचे शिक्षणका प्रश्न सामने आ जाता है और यहाँ उसकी चर्चा नहीं की जा सकती।

समाज भेड़ोंके झुंडकी तरह बिना विचारे, बिना देखे चलता चला जाता है और कोई-कोई इसे ही प्रगति मान लेते हैं। किन्तु स्थिति इतनी भयंकर होते हुए भी हमारा व्यक्तिगत मार्ग तो सरल हो है। जो समझते हैं वे अपने-अपने क्षेत्रमें नीतिमत्ताका जितना प्रचार कर सकें उतना करें। पहले तो उन्हें स्वयं अपने में परिवर्तन करने पड़ेंगे। दूसरोंके दोष देखते हुए हम अपनेको अच्छा मान लेते हैं। यदि हम अपने दोषोंपर ध्यान दें तो देखेंगे कि हम कुटिल और कामी हैं। संसारका काजी बननेकी अपेक्षा अपना काजी बनना अधिक लाभदायी है। यदि हम ऐसा करें तो हमें अपने और दूसरोंके लिए सुमार्ग प्राप्त हो जाता है। 'आप भला तो जग भला' इस कहावतका यह भी एक अर्थ है। तुलसीदासने सन्तजनोंको पारसकी उपमा दी है। यह झूठी उपमा नहीं है। हम सबोंको सन्त बननेका प्रयत्न करना चाहिए। सन्त बनना

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।