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४८९. कातनेवालोंकी कठिनाइयाँ

यज्ञ-रूपमें कातनेवाले एक सज्जन लिखते हैं:[१]

बात तो वाजिब है। चरखा संघको इसके लिए अलगसे एक मासिकपत्र निकालनेकी आवश्यकता नहीं है। 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' के द्वारा उक्त प्रकारकी मुश्किलोंका उपाय बताते रह सकते हैं। जिसे सूत कातने सम्बन्धी या कोई अन्य प्रश्न पूछना हो, वे अवश्य पत्र लिखें। उसका उत्तर 'नवजीवन' में दिया जायेगा। दुःख तो इस बातका है कि लोग तकलीफ सह लेते हैं; लिखते नहीं। इसके कई कारण होते हैं। कभी आलस्य, कभी लापरवाही और कभी इस बातकी चिन्ता कि इससे मेरे ऊपर बोझ पड़ेगा। यज्ञार्थ कातनेवालेको आलस्य और लापरवाही दोनोंमें से कुछ भी शोभा नहीं देता और मेरे ऊपर तरस खानेका अर्थ है मुझपर तथा इस कामके प्रति अन्याय करना। मैं स्वयं जिस प्रश्नको हल नहीं कर सकता, उसका हल दूसरोंसे करानेका प्रबन्ध सहजमें ही किया जा सकता है। इसलिए जिसे भी कोई मुश्किल हो, वह निःसंकोच लिखे। सिर्फ एक शर्त याद रखें। साफ कागजपर स्याहीसे अच्छे अक्षरोंमें लिखें। जो कहना हो बहुत संक्षेपमें कहें; बहस इत्यादि न छेड़ें। पोस्टकार्ड या लिफाफेके ऊपर 'कताईके विषयमें' लिख देंगे तो मुझे बड़ा सुभीता होगा।

ऊपरके पत्रके एक सवालका जवाब तो हम यहीं दिये दे रहे हैं। 'छींटा मारने' का अर्थ है हरएक तारको भिगो देना। कस यानी मजबूती बढ़ानेके लिए यह क्रिया आवश्यक है। इससे २० फीसदीतक मजबूती बढ़ते देखी गई है। इसलिए पानीका छींटा दिये बिना, परेते परसे सूत उतारना नहीं चाहिए। इसके लिए सबसे सहज उपाय है, परेतेको पानीमें, ३ से ५ मिनटोंतक डुबा रखना और फिर हाथसे थपथपाकर सारे सूतको भिगो देना। इससे एक भी तार सूखा नहीं रहने पाता। परेतेमें रस्सीका उपयोग न करके यदि वह केवल लकड़ीका ही बना लिया जाये तो बहुत दिनोंतक चलता है। रस्सी बार-बार पानीमें डुबाते रहनेसे मैली हो जाती है और सड़ जाती है। सुतको डुबाने के बाद तुरंत न उतार कर १२ घंटे चढ़ा ही रहने दें तो हरएक तारमें पानी प्रवेश कर जाता है। डुबाते समय सूत जितना छितरा हुआ हो, उतना ही अच्छा। डुबाने के बाद उसपर हाथ फेर देनेसे वह जल्दी भीग जाता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-९-१९२६
 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्रमें सुझाया गया था कि अखिल भारतीय चरखा संघ कातनेवालोंसे अलग-अलग सम्पर्क रखे और उनकी समस्याएँ समझकर व्यक्तिगत तौरपर अथवा अपना विशेष मुखपत्र निकालकर उनका मार्ग दर्शन करे।