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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दक्षिण आफ्रिकाके प्रतिनिधि यहाँ आयें, ऐसा हमने अथवा जनताने चाहा है। यही दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय भी चाहते थे। यदि हम अपने डेरेमें दुश्मनको भी बुलाते हैं तो हमारा स्पष्ट धर्म है कि हम उसकी आवभगत करें। गोलमेज परिषद[१] करनेका निश्चय यहाँके आन्दोलनके कारण ही किया गया है। ये लोग उसीके सम्बन्धमें यहाँ आ रहे हैं। अतः उनकी आवभगत करना हमारा धर्म है। हम उनका स्वागत करके उनके कानूनोंके बारेमें जो कुछ कहना चाहते हैं उसे कहनेकी अपनी शक्तिमें वृद्धि ही करते हैं। उन्हें बुलाने के लिए केवल सरकारने कदम उठाया है और उससे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है हम ऐसा कहकर अपने दायित्वसे मुक्त नहीं हो सकते। यदि सरकार लोकमतके विरुद्ध कोई कदम उठाये तो उसके बारेमें यह तर्क अवश्य दिया जा सकता है। इसलिए मुझे आपका पत्र पढ़कर आश्चर्य हुआ। मैंने तो यही सोचा था कि उनका स्वागत करना हमारा स्पष्ट कर्त्तव्य है, आप इस बातको अवश्य समझ जायेंगे।

श्री लक्ष्मीदास तेरसी


बड़ाबाजार गेट स्ट्रीट


फोर्ट, बम्बई

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १२२८३) की फोटो-नकलसे।

४८४. पत्र: जमनादास गांधीको

आश्रम, साबरमती
शुक्रवार, भाद्रपद बदी ३, २४ सितम्बर, १९२६

चि॰ जमनादास,

इसके साथ सामलदासका पत्र है। इसका मुख्य भाग बुआजीको पढ़ाना। पत्रको सँभालकर रखना अथवा यहाँ भेज देना। मेरा खयाल है कि अभी फिलहाल तुम्हें अधिक कुछ नहीं करना है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १२२८४) की फोटो-नकलसे।

 
  1. दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रश्नपर गोलमेज परिषद केपटाउनमें १७-१२-१९२६ से १३-१-१९२७ तक हुई थी।