४८२. पत्र: नानालाल कविको
आश्रम
२४ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। इसके लिए कृतज्ञ हूँ। आपको वह पत्र मैंने पंचके रूपमें नहीं, एक प्रतिष्ठित मित्रकें रूपमें लिखा था और आपसे सहायता माँगी थी। लेकिन देखता हूँ कि मैं आपको अपना मुद्दा नहीं समझा पाया हूँ; इसलिए अब आपको तकलीफ नहीं दूँगा।
मोहनदासके वन्देमातरम्
नेपियन सी रोड, बम्बई
गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९५१) की माइक्रोफिल्मसे।
४८३. पत्र: लक्ष्मीदास तेरसीको
आश्रम, साबरमती
शुक्रवार, भाद्रपद बदी ३, [२४ सितम्बर, १९२६][१]
मुझे आपके दो पत्रोंका उत्तर देना रहता है—एक ब्रिटिश मालके बहिष्कारके सम्बन्धमें और दूसरा दक्षिण आफ्रिकाके शिष्टमण्डलके सम्बन्धमें। मैंने आपकी बहिष्कार सम्बन्धी पत्रिका पढ़ी। आपने यह पत्रिका जिस साहससे लिखी है वह आपको शोभा देता है। लेकिन मैं आपकी दलीलसे प्रभावित नहीं हुआ हूँ। मैं ब्रिटिश मालके बहिष्कारको भले ही तात्त्विक दृष्टिसे न मानूँ; परन्तु यदि वह व्यावहारिक दृष्टिसे शक्य अथवा उपयोगी हो तो उसे समझ अवश्य सकता हूँ। आप न तो उसकी शक्यता बता सके हैं और न उपयोगिता। इसके विपरीत आपकी पत्रिका पढ़नेके बाद ऐसा जान पड़ा कि व्यावहारिक दृष्टिसे भी ब्रिटिश मालके बहिष्कारकी उपयोगिता दिखाई नहीं देती। मैं उसके कारणोंमें जाऊँ, ऐसा तो आप नहीं चाहेंगे। आपसे मैं व्यावहारिक कदम उठानेकी अपेक्षा रखता हूँ। आप चतुर हैं; इसलिए माने लेता हूँ कि आप ऐसी चोट नहीं करेंगे जो व्यर्थ जाये। लेकिन आपकी यह चोट तो व्यर्थ ही है।
- ↑ दक्षिण आफ्रिकी शिष्टमण्डलके उल्लेखसे मालूम होता है कि पत्र १९२६ में लिखा गया होगा।