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४७६. टिप्पणियाँ

आगरावासी बी॰ को उत्तर

न तो मैं मनमानी सीमा निर्धारित करता हूँ और न मैं कठोर शर्तें ही रखता हूँ, जिनमें फेरफार न हो सके। विधवाओंको भी वही स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए जो विधुरोंको मिली हुई है। यदि वैधव्यको शुद्ध रखना है तो पुरुषोंको और भी अधिक शुद्धता प्राप्त करनी होगी। आखिर विधवाएँ केवल पुनर्विवाह तभी कर सकती हैं जब पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार हों। फिर भी यह सामान्य नियम बनाया जा सकता है कि जहाँ कोई विधवा संयमका पालन न कर सके वहाँ उसे पुनर्विवाहकी स्वतन्त्रता हो और उसका किसी प्रकारका तिरस्कार न किया जाये। क्या छिपकर पाप करनेकी अपेक्षा खुलेआम शादी कर लेना अधिक अच्छा नहीं है। बाल-विधवाओंके बारेमें तो मतभेद हो ही नहीं सकता। माता-पिताओंको उनका पुनविवाह कर देना चाहिए। यदि शूद्रोंमें पत्नियों और विधवाओंका जीवन जानवरोंसे अच्छा नहीं है—जिससे में बिलकुल इनकार करता हूँ और में दावा करता हूँ कि मैं उनके बारेमें कुछ जानकारी रखता हूँ—तो इसका दोष तथाकथित उच्च वर्णोपर है। मालूम पड़ता है, आप इस नियमको भूल गये हैं कि जब एक अंग पीड़ित होता है तो सारे शरीरको कष्ट होता है। यदि एक शुद्र बुराई करता है तो उससे जैसे स्वयं उसको और उसके विशिष्ट वर्ण या उसकी विशिष्ट जातिको हानि पहुँचती है, वैसे ही उससे समस्त समाजको भी हानि पहुँचती है।

कुछ ही वर्ष पूर्व

श्रीयुत सी॰ बालाजीरावकी नोटबुकसे मैंने निम्नलिखित उद्धरण[१] चुने हैं। ये उन्होंने गिल्बर्ट स्लेटरकी पुस्तक "सम साउथ इंडियन विलेजेस" (दक्षिण भारतके कुछ गाँव) १९१८ (मद्रास विश्वविद्यालय, अर्थशास्त्रीय अध्ययन), से नकल किये हैं। ये उद्धरण मूल्यवान हैं, क्योंकि इनसे मालूम होता है कि हाथ-कताईके नष्ट होने के कारण गाँववालोंको कितनी हानि उठानी पड़ी है। यदि इस उद्योगको पुनरुज्जीवित करनेकी कोशिशके लिए हमें पर्याप्त कार्यकर्ता उपलब्ध हो जायें तो इस क्षतिका परिमार्जन न किये जा सकनेका कोई कारण नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६
 
  1. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। इनमें बताया गया था कि विभिन्न गाँवों में हाथकताई उद्योगके नष्ट हो जानेसे अन्य सहायक कुटीर उद्योगोंका ह्रास कैसे हो गया।