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४७४. लौटे हुए प्रवासी

जो लोग पहले फीजीके अधिवासी थे उन्हें ब्रिटिश गियाना भेजा जा रहा है। उन बदकिस्मत लोगोंको दुबारा निराशासे बचाने के लिए पण्डित बनारसीदास[१] चिन्तित हैं। में इसे समझ सकता हूँ। यद्यपि दोनों देशोंमें बड़ा अन्तर है फिर भी यह प्रयोग करने योग्य है, बशर्ते कि फीजीके लोग ब्रिटिश गियाना जानेके लिए तैयार हों और वहाँको सरकार यह जानते हुए भी कि वे लोग फीजीके रहनेवाले हैं, उन्हें ले ले। जहाँतक उपनिवेशमें उत्पन्न प्रवासियोंका सम्बन्ध है, मुझे विश्वास है कि चाहे उन्हें रसोईघरमें बोली जानेवाली हिन्दुस्तानी ही क्यों न आती हो, वे उपनिवेशोंके सिवा अन्यत्र प्रसन्न नहीं रहेंगे। पण्डित बनारसीदासने जो महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं, बादमें उनपर विचार करना जरूरी होगा।[२]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६

४७५. 'मैं' और 'मेरे' का अभिशाप

दरभंगामें एक शान्ति सभामें दिये गये श्रीयुत सतीशचन्द्र मुखोपाध्यायके भाषणका संक्षिप्त रूप नीचे दिया जाता है। आशा है यह पाठकोंके लिए रुचिकर और लाभदायक होगा।[३]

अगर हम 'मैं' और 'मेरे' को धर्म, राजनीति, अर्थनीति इत्यादिसे दूर कर सकें, तो हमें तुरन्त ही मुक्ति मिल जाये और पृथ्वीपर स्वर्ग उतर आये।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६
 
  1. यंग इंडियाके सम्पादकके नाम लिखे बनारसीदास चतुर्वेदीके पत्रके लिये देखिए परिशिष्ट ६।
  2. बनारसीदास चतुर्वेदीने इस सम्बन्ध में पुनः लिखा और गांधीजीने फिर अपने विचार प्रकट किये। देखिए "लौंटे हुये प्रवासी", ४-११-१९२६।
  3. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें वक्ताने कहा था कि देश में इस समय जो असहिष्णुता और हिंसा फैली हुई है उसका कारण अधिकांशतः हमारी 'मैं' और 'मेरे' की भावना है; अतः अहिंसा, सत्य और ऐसे ही अन्य सद्गुणोंका खयाल रखे जानेपर ही सब धर्मोमें सच्चा सद्भाव होना सम्भव है