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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आचरणको सबपर लादना अन्य सभीकी 'अन्तःकरण' सम्बन्धी स्वतन्त्रतामें असह्य हस्तक्षेप करना है। इस शब्दका बहुत दुरुपयोग हुआ है। क्या सभी लोगोंके [जाग्रत] अन्तःकरण होता है? क्या मनुष्यभक्षी राक्षसके अन्तःकरण होता है? क्या उसे उसके अन्तःकरणके निर्देशके अनुसार आचरण करने देना चाहिए? उसका अन्तःकरण तो कहता है कि अपने साथी मानवको मारकर खा जाना उसका कर्त्तव्य है। अब व्युत्पत्तिके अनुसार अन्तःकरण अथवा विवेकका अर्थ है "सच्चा ज्ञान" । शब्दकोषके अनुसार विवेकका अर्थ है "अच्छाई और बुराईमें भेद करनेवाली तथा तदनुसार आचरणको प्रभावित करनेवाली आन्तरिक शक्ति।" इस प्रकारकी शक्तिकी सम्भावना केवल प्रशिक्षित व्यक्तिमें ही हो सकती है और प्रशिक्षित व्यक्ति वह है जो अनुशासनमें रहता है और जिसने अन्तःकरणकी आवाजको समझना सीखा है। किन्तु अत्यन्त विवेकशील व्यक्तियोंके विचारोंमें भी प्रामाणिक मतभेद होनेकी काफी गुंजाइश है। इसलिए किसी भी सभ्य समाजमें केवल पारस्परिक सहनशीलताके आचरणको ही नियम माना जा सकता है। इसे सभी लोग, चाहे उनका दर्जा कुछ भी हो और उन्होंने कैसा भी शिक्षण पाया हो, अपना सकते हैं और इसका आचरण कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६

४७३. उत्तर महाराष्ट्रमें खादीकी फेरी

श्री वी॰ वी॰ दास्तानेने लिखा है कि ३१ अगस्तसे लेकर ७ सितम्बरतक श्री भरूचाने चालीसगाँव, पचोरा, भुसावल, अकोला और जलगाँवमें फेरी लगाकर ३,५९७ रुपयेकी खादी बेची है। इस कार्य में स्थानीय कार्यकर्ताओंने उनकी सहायता की। उनका कहना है कि खानदेशका माल समाप्त हो गया है और यदि बाहरकी खादी भी शामिल की जाती तो वे और भी अधिक खादी बेच लेते।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६