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४७१. 'प्रार्थनामें विश्वास नहीं'

एक राष्ट्रीय संस्थाके आचार्यके नाम एक विद्यार्थीने एक पत्र लिखा है, जिसमें उसने उनसे अनुरोध किया है कि उसे प्रार्थनामें आनेके नियमसे मुक्त किया जाये। यह पत्र नीचे दिया जाता है:

निवेदन है कि प्रार्थनामें मेरा विश्वास नहीं है क्योंकि नहीं मानता कि ईश्वर-जैसी कोई वस्तु है जिसकी में प्रार्थना करूँ। मुझे अपने लिए ईश्वरकी कल्पना करने की जरूरत कभी नहीं मालूम होती। अगर मैं उसका अस्तित्व माननेके झंझटमें न पड़ें तथा शान्ति और साफदिलीसे अपना काम करता जाऊँ तो इसमें मेरा बिगड़ता भी क्या है?
सामुदायिक प्रार्थना तो बिलकुल ही व्यर्थ है। क्या इतने लोग एकसाथ बैठकर किसी मामूलीसे-मामूली चीजपर भी अपना ध्यान जमा सकते हैं? क्या छोटे-छोटे अबोध बच्चोंसे यह आशा रखी जाती है कि वे अपने चंचल मनको हमारे महान् शास्त्रोंके जटिल तत्त्वोंपर मसलन आत्मा, परमात्मा और मनुष्य-मात्रकी एकात्मता इत्यादि बातोंसे सम्बन्धित गूढ़ भावोंपर एकाग्र करें। इतना जबरदस्त काम एक नियत समयपर तथा विशेष व्यक्तिको आज्ञा पानेपर करना पड़ता है। क्या इस प्रकारकी किसी यान्त्रिक क्रिया द्वारा बालकोंके दिलोंमें उस कथित ईश्वरके प्रति प्रेम उत्पन्न हो सकता है? विभिन्न स्वभावके लोग कथित ईश्वरके प्रति इस तरह प्रेम रखें यह आशा रखना एक बड़ी ही नासमझीकी बात है। इसलिए प्रार्थनाको अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। प्रार्थना वे करें जिनकी उसमें रुचि हो और जिनकी प्रार्थनामें रुचि न हो वे उसे न करें। बिना दृढ़ विश्वासके कोई काम करना अनीतिमूलक एवं पतनकारी है।

हम पहले इसमें व्यक्त अन्तिम विचारकी समीक्षा करते हैं: क्या नियमपालनकी आवश्यकता भलीभाँति समझनेसे पहले नियमपालन करना अनीतिपूर्ण और पतनकारी है? क्या स्कूलके पाठ्यक्रमकी उपयोगिता अच्छी तरह जाने बिना उस पाठ्यक्रममें दिये गये विषयोंका अध्ययन करना अनीतिपूर्ण और पतनकारी है? अगर कोई लड़का अपनी मातृभाषा सीखना व्यर्थ मानने लगे तो क्या उसे मातृभाषा सीखनेकी बाध्यता से मुक्त कर देना चाहिए? क्या यह कहना ज्यादा ठीक न होगा कि एक लड़केको इन बातोंका ज्ञान ही नहीं होता कि उसे क्या विषय पढ़ना चाहिए और किन नियमोंका पालन करना चाहिए। अगर इस बारेमें उसकी खुदकी कोई पसन्द थी भी तो जब वह किसी संस्थामें प्रवेश लेनेके लिए गया तभी खत्म हो चुकी। किसी संस्था विशेषमें उसके भरती होनेका अर्थ यह है कि उसने उस संस्थाके नियमोंका पालन करना सहर्ष