पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/४९२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस समयके लिए सर्वोत्तम रही हो। हो सकता है कि इसीके अनुसार चलनेका परामर्श देना भी उचित रहा हो; किन्तु निःसन्देह इसे निष्क्रिय प्रतिरोध नहीं कहा जा सकता।

समाजके हितके लिए स्वेच्छासे ग्रहण किया गया संयम निष्क्रिय प्रतिरोध है। इसलिए यह एक उत्कट क्रियाशील और शोधक आन्तरिक शक्ति है। यह जब-तब निष्क्रिय प्रतिरोधकारीके स्थूल लाभके विरोधमें भी पड़ती है और इसके कारण उसके साम्पत्तिक सर्वनाशकी भी नौबत आ सकती है। इसकी जड़ आन्तरिक शक्तिमें है, निर्बलतामें कदापि नहीं। इसका प्रयोग भी ज्ञानपूर्वक ही किया जाना चाहिए। अतः निष्क्रय प्रतिरोध करनेवालेमें शारीरिक प्रतिकारकी शक्तिका होना भी निहित है। इसलिए अन्तिम उदाहरणमें जापानी लोगोंका व्यवहार निष्क्रिय प्रतिरोध तब कहा जा सकता था जब वे अपनी सारी दौलत खोकर भी भविष्यमें आनेवाले जापानियोंके अधिकार न बेचते। वे अत्याचारियोंके हाथों भयंकर कष्ट पाकर प्राण भी दे देते, किन्तु मनमें बदलेका भाव भी न लाते और इस प्रकार उनका हृदय द्रवित करते। यदि उन्होंने बिना कोई कष्ट सहे अपनी सम्पत्ति बचा ली तो यह सत्यकी विजय नहीं कही जा सकेगी। निष्क्रिय प्रतिरोधकी भाषामें अमेरिकी धर्म-संघको उसकी कठिनाईमें सहायता रिश्वत कही जायेगी; दान अथवा प्रेमका चिह्न कदापि नहीं।

आत्मत्याग और अपनी प्रच्छन्न शक्तियोंके ज्ञानके बहुत दिनोंके अभ्याससे ही निष्क्रिय प्रतिरोधका भाव उदय होता है। इससे मनुष्यका सारा जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण ही बदल जाता है। इससे पहलेकी धारणाएँ बदल जाती हैं, और बातोंका महत्त्व कुछका-कुछ हो जाता है। यदि एक बार इस शक्तिको वेग मिल गया और वह काफी तीव्र हो गया तो वह सारे संसारमें व्याप्त हो सकती है। आत्माकी बड़ीसे-बड़ी अभिव्यक्ति होनेके कारण यह सर्वोत्तम शक्ति है। इसका पूरा प्रयोग करनेके लिए यह आवश्यक नहीं कि सब लोगोंमें सविवेक निष्क्रिय प्रतिरोध करनेकी एक-सी शक्ति हो। जैसे केवल एक सेनापति अपने अधीनस्थ लाखों सिपाहियोंकी ताकतका उपयोग और प्रयोग करनेके लिए काफी होता है और वे सिपाही यह नहीं जानते कि वह उन्हें क्यों और किसलिए किसी स्थानमें रख रहा है, प्रकार यदि निष्क्रिय प्रतिरोधकी शक्ति केवल एक ही आदमीमें हो तो वह भी काफी है। एक ही रामचन्द्रके बन्दर और भालू दशशीश रावणकी शस्त्र-अस्त्रोंसे सुसज्जित सेनाके छक्के छुड़ानेके लिए काफी थे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६