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४७०. निष्क्रिय प्रतिरोध, सही और गलत

अमेरिका एक बड़े पैमानेपर अन्तर्जातीय झगड़ोंका घर बना हुआ है। साहसी पुरुषोंसे भरी उस भूमिमें ऐसी सच्ची लगनवाले-स्त्री-पुरुष भी हैं जो इस मुश्किल मसलेको निष्क्रिय प्रतिरोधके ढंगसे हल करना चाहते हैं। एक ऐसे ही अमेरिकी मित्रने[१] मेरे पास 'इनक्वायरी' नामका एक पत्र भेजा है। उसमें निष्क्रिय प्रतिरोधके सिद्धान्तकी एक रोचक चर्चा है। इसमें जो उदाहरण दिये गये हैं उन्हें सम्भवतः निष्क्रिय प्रतिरोधकी श्रेणीमें रखा जा सकता है। मैं यहाँ तीन नमूने चुनकर देता हूँ:

एक चीनी विद्यार्थीने सरकारी विश्वविद्यालयके अपने अनुभवका वर्णन किया। वह उस विश्वविद्यालयसे जल्दी ही स्नातक होनेवाला था। वहाँ किसीने भी उसका स्वागत प्रेमभावसे तो नहीं ही किया। हाँ, कुछ लोगोंने बादमें आगे बढ़कर उससे मित्रता अवश्य को। एकने तो उसे एक दिन सप्ताहके अन्तमें छुट्टीके दिन अपने घर निमन्त्रित भी किया। दूसरी ओर उसकी बगलकी कोठरीमें उसका जो एक सहपाठी रहता था, वह उसके लिए विशेष रूपसे दुःखदायी बन गया। वह कभी उसके दरवाजेपर अपने जूते फेंकता और कभी दूसरी शैतानी करता। जो अमेरिकी विद्यार्थी उसे अपनी माता और बहनसे परिचित करानेके लिए अपने घर ले गया था चीनी विद्यार्थीने उसे उसके प्रति तीव्र घृणा व्यक्त करते भी सुना। इसपर उसने निश्चय किया, मैं इसे सम्मान करना सिखाऊँगा और अपने लिए नहीं बल्कि अपनी प्यारी मातृभूमिके लिए।
इसलिए उसने अपनी तरफसे खास कोशिश करके उससे दोस्ती की। वह रोज सबेरे उसे देखकर मुस्कराकर नमस्कार करता, अगचें शुरूमें उसे इसका जवाब भी नहीं मिलता था। लेकिन उसने मान-अपमानका खयाल नहीं किया, और उस पड़ोसी विद्यार्थीके प्रति सुखकर और उपयोगी बनने की कोशिश की। जब कभी उसे पता चलता कि मेरे सहवासीका हाथ तंग है, तो वह उसे अपने साथ जब-तब सिनेमा देखनेका आमन्त्रण देता। वे धीरे-धीरे आपसमें ज्यादा बात करने लगे और उन्होंने देखा कि कई बातोंमें उनकी दिलचस्पी समान है। कुछ दिनों बाद इस अमेरिकी विद्यार्थीने उसे अपने घर निमन्त्रित किया।
इसके बाद उस चीनीने बताया कि अब हम लोगोंमें गहरी मित्रता हो गई है और में कितने ही त्योंहार और साप्ताहिक अवकाश उसके घर बिता चुका
  1. यह एक भारतीय था। देखिए "भूल-सुधार", ७-१०-१९२६।