४६८. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको
भाद्रपद शुक्ल १५ [२१ सितम्बर, १९२६][१]
आपका पत्र मीला है। हि॰ न॰ जी॰ के करीब २५०० ग्राहक होंगे। स्वाश्रयी बनने के लीये और ५०० चाहिये। मुझे ठीक पता नहि है महाराष्ट्रके कीतने होंगे। लवाजम दूर करनेसे कुछ फायदा नहीं होगा। आप चिंता न करें, रामनाम नित्य जपें।
आपका,
मोहनदास
मूल पत्र (जी॰ एन॰ १६६) की फोटो-नकलसे।
४६९. मैसूरमें कताई
मैसूरके औद्योगिक विभागके प्रमुख श्रीयुत जेड० मक्काईने हाथ-कताईपर एक रोचक विवरण तैयार किया है। उसका सारांश नीचे दिया जा रहा है।[२]
हिन्दुस्तानमें एक ही सार्वजनिक घरेलू धन्धा है। मैं उसके पुनरुद्धारको उत्तेजन देनेपर मैसूरके अधिकारियोंको साधुवाद देता हूँ। मैं उन्हें अखिल भारतीय चरखा संघके अनुभवोंसे लाभ उठानेकी सलाह दूँगा। प्रयोग और जाँचके द्वारा यह देखा गया है कि हाथ-कताईके साथ-साथ हाथ-ओटाईका काम भी शुरू कराना इष्ट है। उन जिलोंमें जहाँ कपास पैदा होती है, यह बहुत ही सहज है। जहाँ कपासकी खेती होती तो नहीं है, लेकिन उसे पैदा करना सम्भव है, वहाँ कपासकी खेतीको उत्तेजन देना चाहिए। कलके द्वारा ओटी हुई और दबाई हुई कपासका कस कम हो जाता है। और हाथकी ओटी हुई रुईकी बनिस्बत उसका हाथसे धुनना भी कहीं मुश्किल है। हिन्दुस्तानके कई हिस्सोंमें कातनेवाले कपास ही लेते हैं। उन्हें अपनी रुई आप ही घुन लेनेके लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए। धुनना और कातना, दोनों क्रियाएँ करनेसे कातनेवालेकी आमदनी दूनी हो जाती है। हाथकते सूतकी ताकतको बढ़ाने के लिए रियासतको समय-समयपर सूतकी जाँच और उस जाँचका फल प्रकाशित करते रहना चाहिए। सच पूछें तो साराका-सारा काम शास्त्रीय रीतिसे किया जाना चाहिए। इसके लिए मैसूर-जैसे राज्यसे अधिक उपयुक्त भला दूसरा कौन राज्य हो सकता है?
यंग इंडिया, २३-९-१९२६