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४६४. पत्र: ए॰ डब्ल्यू॰ बेकरको[१]

आश्रम
साबरमती
२१ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

मुझे यह जानकर कि आप मेरे बारेमें सोचते ही रहते हैं, सुख हुआ। मुझे मालूम नहीं था कि आप नॉर्थ शैपस्टनमें रहने लगे हैं। मुझे उम्मीद है कि रमणीक समुद्र तटपर रहनेसे श्रीमती बेकरको लाभ हो रहा होगा। मैं आपकी इस बातसे सहमत हूँ कि सत्य एक है, लेकिन हम उसे अपने-अपने धुँधले चश्मोंसे और सो भी उसका एक अंश ही देख पाते हैं। दृष्टिकोणकी बहुलता इसका स्वाभाविक परिणाम है। लेकिन यदि सभी केन्द्रमें स्थित किसी एक ही सत्यसे परिचालित हों तो सूर्यसे निकलनेवाली किरणोंकी तरह सबको ठीक ही मानना चाहिए। लेकिन मैं तर्क नहीं करना चाहता। हममें मतभेद हो सकते हैं परन्तु मैं जानता हूँ कि हम सब एक ही दिशाकी ओर जा रहे हैं।

हृदयसे आपका,

ए॰ डब्ल्यू॰ बेकर


नॉर्थ शेपस्टन


नेटाल

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०८१५) की फोटो-नकलसे।

 
  1. अपने २४ अगस्तके पत्रमें वेकरने कहा था कि आपने अपने पिछले पत्रमें सत्यके विभिन्न पहलुओं और इसलिए विभिन्न दृष्टिकोणोंकी बात की थी; किन्तु सत्य तो एक ही है, जैसे सौर मण्डलमें सूर्य एक ही है। उन्होंने यह भी पूछा था कि जैसे सूर्यसे पहले आकाश में सूर्यके प्रकाशसे चमकनेवाले ग्रह हो सकते हैं क्या बुद्ध और कन्फ्यूशियस, ईसा-रूपी सूर्यके परमप्रकाशले प्रतिबिम्बित वैसे ही ग्रह नहीं थे।