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४६१. भेंट: 'नेटाल एडवर्टाइजर' के प्रतिनिधिसे[१]

[बम्बई
१९ सितम्बर, १९२६]

...उनका निश्चित मत है कि जनसाधारणको दशामें सुधारकी आवश्यकता अधिकाधिक गम्भीर होती जा रही है। वे कहते हैं कि जिन दिनों मौसम खेतीके अनुकूल नहीं रहता सालके उस खासे बड़े अरसेमें किसान बेकार बैठे रहते हैं। उन दिनों अपनी आयमें वृद्धि करने और विदेशी वस्त्र निर्माताओं द्वारा भारतके शोषणको रोकनेके लिए उन्हें चरखा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

विदेशी वस्त्र निर्माताओंको सूती कपड़ेके बदले प्रति वर्ष भारतसे ४०,०००,००० पौंड प्राप्त होता है। यदि लोग चरखेको अपना लें तो यह पैसा बच जाये।

उन्होंने स्वीकार किया कि विदेशी वस्त्र अथवा भारतमें मिलोंका बना कपड़ा घरमें कते तथा बुने हुए वस्त्रसे ज्यादा अच्छा और सस्ता है। लेकिन जब उनसे कहा गया कि क्या आपका आन्दोलन श्रमको बचत करनेवाली बड़ी-बड़ी मशीनोंको अपरिमित शक्तिका और बड़े पैमानेपर उत्पादनकी प्रणालीका विरोध करनेकी हद तक उतना ही असफल नहीं रहा है जितना इंग्लैंडमें अधिक श्रमिकोंको रोजगार देते रहनेके खयालसे श्रमकी बचत करनेवाली मशीनोंको नष्ट कर देनेवाला अभियान साबित हुआ था। तब उन्होंने इसे ठीक नहीं माना और कहा कि भारतका जीवन-दर्शन मेरे आन्दोलनको अवश्य सफल बनायेगा। (इसपर एक मिल-मालिकने यह प्रश्न किया "जब मिल-मजदूर, अपेक्षाकृत अधिक हल्का काम करके प्रतिदिन जितना कमा लेते हैं, हाथकताईसे उसको एक तिहाई आय ही प्राप्त की जा सकती है, तब यह सफल कैसे हो सकता है? ") प्रश्नोंके उत्तर देते हुए गांधीजीने कहा कि यह आन्दोलन "एक बड़ी गहरी धर्मभावना" से अनुप्राणित है; इस धर्मभावनाका कोई कर्मकाण्ड नहीं है, किन्तु साहित्य और सभाओंके द्वारा इसका प्रचार किया जाता है। उन्होंने कहा कि हाथकताईकी शुरुआत-भर करा देनेसे समाजपर बड़ा स्फूर्तिदायक प्रभाव पड़ा है और अन्ततः इस आन्दोलनके सफल हो जानेपर लोगोंमें जो आत्म-विश्वास पैदा होगा उससे स्पष्ट हो जायेगा कि इसका एक राजनीतिक महत्त्व भी है।...

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ३-१२-१९२६
  1. १८ सितम्बरको गांधीजी दक्षिण आफ्रिकी शिष्ट मण्डलके सदस्योंका स्वागत करनेके लिए बम्बईके लिए रवाना हुए थे। यह भेंट ताजमहल होटलमें सरोजिनी नायडूके कमरेमें १९ सितम्बरको हुई थी और इसका विवरण नेटाल एडवर्टाइजर टाइम्सके सम्वाददाता द्वारा भेजा गया था। जिसे बादमें हिन्दू ने पूना, २१ सितम्बरको तारीख डालकर उद्धृत किया था।