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टिप्पणियाँ

चरखा और आत्मशुद्धि

वेड़छीसे एक कार्यकर्त्ता लिखते हैं:[१]

जिसकी जैसी भावना होती है उसे उसके अनुरूप ही फल मिलता है। आजीविकाके लिए पत्थर तोड़नेवाले फरहादको शीरीं मिली। हम चरखेके लिए जितनी शक्ति लगायेंगे चरखे में उतनी ही शक्ति उत्पन्न हो जायेगी। ओंकार इत्यादि नामोंमें अगाध शक्ति तो है, किन्तु उसका कारण यह है कि उनके पीछे उच्चतम भावना और इतनी पर्याप्त तपश्चर्या रही है कि वे नाम फलदायी सिद्ध हो सकें। वैसे ही अगर हम चरखेमें भी दीन-दुखियोंकी सेवा, जनशुद्धि और आत्मशुद्धिकी भावना भरेंगे, उसे सिद्ध करनेके लिए तपस्या करेंगे और आत्मबलिदान देंगे तो उसका फल मिलेगा—मिले बिना नहीं रहेगा।

वेड़छीमें कुछ ऐसी ही बात हुई है। शराबबन्दीका काम इसी प्रकार चलता है। शराबीसे अगर शराब छोड़नेके लिए कहें तो वह उसे समझेगा ही नहीं। उसके लिए तो वह एक अनजानी बोली ही होगी। मगर यदि हम उसके पड़ोसमें रहकर स्वयं उद्यम करके, उसे उद्यमका पदार्थपाठ सिखायें तो वह शराब छोड़ देगा। मालूम होता है कि वेड़छीके शराबियोंके साथ भी ऐसा ही हुआ है। सभी स्थानोंमें इसी धैर्य और श्रद्धासे काम लिया जाये तो सफलता जरूर मिलेगी।

परन्तु मैं सभी कार्यकर्ताओंको एक चेतावनी देता हूँ। अभी सुधारका जो अंकुर फूटा है, अगर उसका निरन्तर सिंचन न होता रहा तो यह चार दिन हरा रहकर फिर सूख सकता है। लोगोंमें जो परिवर्तन हुआ है उसे स्थायी बनानेके लिए, वहाँ रहनेवाले कार्यकर्ताओंको डटकर एक जगह बैठ जाना होगा और फिर सचेत होकर बिना रुके अपना काम करते जाना होगा।

पुराना चरखा-गीत

बारडोली ताल्लुकेका एक निवासी लिखता है।[२]

इस गीतमें एक आध्यात्मिक अर्थ है। अर्थ इतना स्पष्ट है कि सहज ही समझमें आ सकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९-९-१९२६
 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने बताया था कि गुजरातके बारडोली ताल्लुकेमें गोधरा लोगोंने जबसे चरखा अपनाया है तबसे उनकी हालत कितनी बदल गई है।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें लेखकने एक बुढ़िया द्वारा सुनाया हुआ एक गीत दिया था जो साठ वर्ष पहले चरखा चलाते समय गाया जाता था और जिसे बुढ़ियाने अपनो मांसे सीखा था।