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१२. कुछ उलझे हुए प्रश्न

ब्रह्मदेशसे एक डाक्टर मित्र लिखते हैं :

आप खादीपर ही क्यों जोर देते हैं, स्वदेशीपर क्यों नहीं? क्या स्वदेशी मूल सिद्धान्त और खद्दर उसकी केवल एक तफसील ही नहीं है?

मैं खद्दरको स्वदेशीका विस्तार नहीं मानता। स्वदेशी भाववाचक शब्द है और खद्दर स्वदेशीकी मूर्त और केन्द्रभूत वस्तु है। बिना खद्दरके स्वदेशी ऐसी है जैसी आत्माके बिना देह, जो केवल अन्त्येष्टिके योग्य होती है। केवल खादी ही स्वदेशी वस्त्र है। इस देश के करोड़ों मनुष्योंकी भाषामे स्वदेशीका अर्थ करना हो तो स्वदेशीका सार— हर साँसमें हवाकी तरह उपयोगी— खादी ही है। स्वदेशीकी कसौटी यह नहीं है कि स्वदेशीके नामसे प्रचलित किसी वस्तुका सार्वत्रिक उपयोग हो। परन्तु यह है कि उस वस्तुको तैयार करनेके काममें सभी लोग अपना-अपना हिस्सा बँटा सकते हैं या नहीं। इस प्रकार विचार करनेपर मिलका कपड़ा एक संकुचित अर्थमें ही स्वदेशी हो सकता है; क्योंकि उसे तैयार करनेमें भारतके करोड़ों लोगोंमें से एक बहुत ही नगण्य संख्याके लोगोंके श्रमका ही उपयोग हो सकता है। परन्तु खादीको तैयार करनेमें तो करोड़ों लोगोंकी मेहनतका उपयोग होता है। लोग जितने अधिक होंगे उतना ही अधिक आनन्द आयेगा। मेरे विचारमें तो खादीके साथ करोड़ों मनुष्योंका कल्याण जुड़ा हुआ है। इसलिए स्वदेशीमें सबसे मुख्य चीज खद्दर ही है और वही उसका सच्चा रूप है। अन्य सभी बातें इसीसे निकलती हैं। यदि हम भारतमें बने पीतलके बटन और दंतखोदनीका इस्तेमाल न करें तो भी भारत जीवित रह सकता है। परन्तु यदि हम खादी तैयार करने और उसे पहनने से इनकार कर देंगे तो भारत जीवित नहीं रह सकेगा। भारतके करोड़ों लोगोंके खाली समयके उपयोगके लिए कोई अधिक लाभप्रद कार्य मिल जानेपर ही खादीको इतना अधिक महत्त्व दिया जाना बन्द हो सकता है।

परन्तु डाक्टर साहब कहते हैं :

अच्छी खादी तो बड़ी महँगी और साधारण खादी भद्दी होती है।

मैं इससे इनकार करता हूँ कि किसी भी किस्मकी खादी भद्दी होती है। मशीनसे बने कपड़ोंमें जो जीवनहीन समानता होती है, उसका अभाव भद्दापन नहीं है; बल्कि यह तो जीवनका सूचक है, जैसे एक वृक्षके लाखों-करोड़ों पत्तोंमें पूरी-पूरी समानताका अभाव कोई भद्देपनकी निशानी नहीं है। सच बात तो यह है कि पत्तोंको असमानता ही वृक्षको जीवनमयी शोभा देती है। मैं मशीनसे बनाये गये किसी वृक्षकी कल्पना कर सकता हूँ। उसके सब पत्ते एक ही आकारके होंगे। परन्तु वह बड़ा भयानक मालूम होगा, क्योंकि अभी हमने स्वाभाविक वृक्षसे प्रेम करना त्याग नहीं दिया है। और खादीकी कीमतके बारेमें वह अच्छी या बुरी जैसी भी हो, हमें