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४५५. पत्र : आर० के० करन्थाको

आश्रम
साबरमती
१८ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। अन्य लोगोंके अनुभवोंके आधारपर आपके द्वारा भेजी हुई जानकारी में 'यंग इंडिया' में तबतक प्रकाशित नहीं करना चाहता जबतक कि मैं स्वयं उसकी छानबीन न कर लूं। जो लोग इस तरह आसनादि करते हैं, उनसे मैं सम्पर्क बनाये हुए हूँ, लेकिन अबतक मैं उनके लाभके बारेमें उनसे निश्चयपूर्वक वैसा कुछ नहीं सुन पाया हू जैसा सौभाग्यवश आप सुन पाये हैं। आपका पत्र में खुद स्वामीजीके[१] पास भेज रहा हूँ, ताकि वे उसके बारेमें अपने विचार बता सकें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर० के० करन्था

ग्लेडहर्स्ट
सान्ताक्रूज

बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७०१) की माइक्रोफिल्मसे।

४५६. पत्र : स्वामी कुवलयानन्दको

आश्रम
साबरमती
१८ सितम्बर, १९२६

प्रिय भाई,

साथमें एक पत्र[२] भेज रहा हूँ। उसे पढ़कर अपने विचार लिखिये। पत्र लेखक द्वारा बताई गई दिशामें यदि आपको कोई निश्चित परिणाम दिखाई दिया हो और आप उसकी ठीक-ठीक ताईद कर सकते हों तो कृपया लिख भेजिए। मेरे लिए वह बड़ा उपयोगी होगा, और मैं कुछ नौजवानोंसे ऐसे आसन करनेके लिए कहूँगा। यह

  1. स्वामी कुवलयानन्द, देखिए अगला शीर्षक।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।