४५२. पत्र : बी० एन० मजूमदारको
आश्रम
साबरमती
१७ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। धन्यवाद। तलाकका प्रश्न उठाकर हमें विषयको उलझाना नहीं चाहिए। विचारणीय प्रश्न तो यह है कि क्या विधवाको भी विधुरके समान अधिकार और स्वतन्त्रता होनी चाहिए और क्या कम उम्रकी जिस लड़कीके साथ, चाहे वह १५ सालकी भी क्यों न हो गई हो, लगभग बलात्कार किया गया हो और बादमें जो वर्तमान मिथ्या धारणाके अनुसार 'विधवा' हो गई हो, उसे विवाह अथवा यदि आप कहना चाहें तो उचित शिक्षा प्राप्त व्यक्तिसे पुनर्विवाह करनेका अधिकार दिया जाना चाहिए अथवा नहीं।
आप इस सिलसिलेमें किये गये बलात्कार शब्दके प्रयोगसे न चौंकें। मैं तो यह चाहता हूँ कि आप हमारे समाजमें जो-कुछ हो रहा है, उसे देखकर चौंकें। हम विधवाओंमें जिस पवित्रताका आरोप करते हैं, प्रमाणित हो गया है कि वह गलत है। आज गुप्त पाप हमारे समाजको नीचे गिरा रहा है। यह गुप्त पापाचार कभी-कभार प्रकाशमें आ जाता है। इससे हमें यह समझ लेना चाहिए कि वैधव्यके सम्बन्धमें हमारा पवित्रता, धर्म और नैतिकताकी दुहाई देना उचित नहीं है। हमें तरुणी विधवाओंके अत्यावश्यक पुनर्विवाहका नहीं, हिन्दू समाजमें आज पुरुषोंकी जो अमानुषिक भोगलिप्सा व्याप्त है उसका विरोध करना है। आपने क्या कभी उन पुरुषोंके बारेमें गौर किया है जिनकी एकाधिक पत्नियाँ हैं? अथवा उन बूढ़ोंकी ओर ध्यान दिया है जिनके पैर कब्रमें लटके हुए हैं लेकिन जो ग्यारह-ग्यारह, बारह-बारह सालकी लड़कियोंसे विवाह कर लेते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले पश्चिम और दक्षिण भारतमें ऐसे विवाह हुए हैं; और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि समस्त भारतमें ऐसे विवाह होते रहते हैं।
हृदयसे आपका,
सहायक इंजीनियर, पी० डब्ल्यू० डी०, बंगाल
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६९८) की फोटो-नकलसे।