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पत्र : सेवकराम करमचन्दको

३. मैं समझता हूँ, यह बहुत सम्भव है कि हमारी जिन्दगीके दिन निश्चित हैं अर्थात् हमें कितनी साँसें लेनी हैं, यह निर्धारित रहता हो, लेकिन इस अवधिका नियमन करना और इस प्रकार स्पष्ट ही जीवनकी अवधि बढ़ाना सम्भव है। इस प्रश्नपर मैंने कोई अध्ययन या विचार नहीं किया है और न मैं इससे अपने मनको परेशान होने देता हूँ। इसलिए इस सम्बन्धमें मैंने जो कुछ कहा है उसे आप मेरे निश्चित अनुभव अथवा विश्वासके रूपमें न लें। मैंने वही कहा है जो दूसरे लोग मानते हैं और मुझे भी ठीक लगता है।

४. निस्सन्देह इनकी[१] प्रकृति शीत है। किन्तु एक तरहसे ये उत्तेजक भी होते हैं। यों कमसे-कम बकरी के दूधसे तो इन दिनों में भी परहेज नहीं रख रहा हूँ। लेकिन मेरा यह विश्वास अब भी कायम है कि ब्रह्मचर्य पालनको आसान बनाने के लिए स्वास्थ्यको देखते हुए जब कभी उचित हो, दूध तथा उससे बननेवाली चीजें— जैसे दही आदि— से परहेज रखना ठीक है।

५. यह सही है कि अगर मैं सूर्यास्तसे पहले नहीं खा पाता तो फिर मैं भोजन करता ही नहीं हूँ। ब्रह्मचारीके लिए यह नियम बहुत अच्छा है।

६. मैं नियमपूर्वक टहलनेका व्यायाम करता हूँ। मैं अपनी आदतोंको नियमित रखता हूँ और भोजनकी किस्म और प्रकारका पूरा खयाल रखता हूँ, साथ ही अपनी अन्य इन्द्रियोंको भी नियन्त्रणमें रखता हूँ और इस तरह अपनी काम करनेकी क्षमता बनाये रखता हूँ।

७. सोमवार मेरा मौन दिवस होता है। उस दिन मैं कमसे-कम अंशत: तो 'यंग इंडिया' का सम्पादन करता ही हूँ, लेकिन ऑपरेशनके बादसे अब उस दिन उपवास नहीं रखता। जिन नौजवानोंका जीवन बहुत व्यस्त रहता है और इस कारणसे जो अपने भोजनकी किस्म और परिमाणका पूरा खयाल नहीं रख पाते, उनको मेरा यह सुझाव जरूर है कि वे हफ्तेमें कमसे-कम एक दिन उपवास करें। साप्ताहिक उपवास अगर ठीक तरहसे किया जाये तो वह सभी प्रकारके और विशेषकर दिमागी काम करने में बाधक होने के बजाय सहायक होता है।

८. कोई भी अध्यापक अपने विद्यार्थियोंकी सबसे अच्छी सेवा इसी तरह कर सकता है कि वह हर दृष्टिसे आदर्श जीवन व्यतीत करे तथा विद्यार्थियोंके साथ पूरा-पूरा तादात्म्य स्थापित करे।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सेवकराम करमचन्द

अध्यापक
एम० ए० वी० स्कूल

पुराना सक्खर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६९७) की फोटो-नकलसे।

  1. दूध-दही आदि।