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पत्र : कुमारी हेलन हॉसडिंगको

तुम्हें इस ओरसे पूरी तरह उदासीन हो जाना चाहिए। 'यंग इंडिया' की प्रति रजिस्टर्ड डाकसे मँगवाने के बजाय क्या साधारण डाकसे उसकी दो प्रतियाँ मँगवाना बेहतर नहीं रहेगा? एक प्रति प्रकाशनके बाद ही भेज दी जाये और दूसरी अगले सप्ताह, ताकि वह पहले या दूसरे हफ्तेमें मिल ही जाये। मेरा खयाल है कि डाक विभागको रजिस्टर्ड पत्रोंको रोकने अथवा खोलनेसे कोई मना नहीं कर सकता। अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैं खुद उनसे कहता कि अगर इस तरह डाक मुझे जल्दी मिल सकती हो तो मेरे पत्र और पत्रिकाएँ खोलकर देख लिये जाया करें।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०८१३) की फोटो-नकलसे।

४४९. पत्र : कुमारी हेलन हॉसडिंगको

आश्रम
साबरमती
१७ सितम्बर, १९२६

प्रिय "स्पैरो,"[१]

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारी सलाहके मुताबिक मैं उन जर्मन मित्रको जरूर ही कुछ भेज दूंगा। फुन्सियाँ तो मनका भ्रम मात्र थीं और मसूरीकी ताजा हवाके कारण मन स्वस्थ हो गया; तो फुन्सियाँ भी जाती रहीं। देखता हूँ तुम वहाँ सचमुच प्रफुल्लित और आनन्दित हो। लगता है, तुमने सितम्बरके बाद भी वहाँ रहनेके लिए मन तैयार कर लिया है। कृपलानी और विद्यार्थी लोग इस बातका बुरा नहीं मानेंगे। तुम्हारी अनुपस्थितिके लिए मैं उनसे क्षमा माँग लूंगा; और यदि तुम्हारे इस पापकी गठरीको दूसरा कोई उठा सकता हो तो मैं इसे अपने सिर ले लूंगा। पास रहकर तुम्हारी फोड़े-फुन्सियाँ और कब्ज सम्बन्धी चें-चेंसे तो सुदूर मसूरीसे तुम्हारी चहक सुनना ज्यादा अच्छा है। मैं लेटिनकी उस कहावतमें विश्वास करता हूँ जिसका अर्थ है "तन चंगा तो मन चंगा"।

देवदाससे मालूम हुआ कि लखनऊमें तुम्हारा कोई गोद लिया बेटा है। मैं तुम्हें जोर देकर यही सलाह दूंगा कि जबतक सर्दी न पड़ने लगे, ठण्डा मौसम न आ जाये तबतक तुम अपने उस बेटेके पास जानेका लोभ संवरण करो। मैं तो यही चाहूँगा कि तुम जितने ज्यादा दिन मसूरीमें रह सकती हो, रहो, अथवा अपने बेटेसे कहो कि वह किसी अधिक ठण्डी जगहमें अपना घर ढूंढ़े और फिर तुम्हें वहाँ ले जाये।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६९४) की फोटो-नकलसे।

  1. १. गांधीजी इन्हें स्नेहसे "स्पैरो" कहते थे।