पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/४७१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४४६. पत्र : प्राणजीवन मेहताको

आश्रम
साबरमती
भाद्रपद सुदी ९, १६ सितम्बर, १९२६

भाईश्री ५ प्राणजीवन,

मैंने आपको चि० जेकीके बारेमें एक पत्र लिखा है। इसके साथ उसका पत्र भी भेज रहा हूँ। लगता है आपने कामकाज करना शुरू कर दिया है। आपने अपने स्वास्थ्यका इतना काफी ध्यान रखा है कि आपसे यह कहने की जरूरत ही नहीं रह जाती कि हदसे ज्यादा काम मत किया कीजिए। जेकीको रुपये नियमित रूपसे भेजते रहें। उसे यहाँ आनेके लिए रुपये भेजे जायें या नहीं अथवा यहाँ आनेके लिए कहा जाये या नहीं इस सम्बन्धमें भी लिखें। हो सके तो जवाब तार द्वारा दें।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री प्राणजीवन मेहता

१४, मुगल स्ट्रीट

रंगून

गुजराती पत्र (एस० एन० १२२८२) की फोटो-नकलसे।

४४७. पत्र : एस्थर मेननको

आश्रम
साबरमती
१७ सितम्बर, १९२६

रानी बिटिया,

तुमने अपने पत्रमें जिस तरहके रोमन कैथोलिक उपवासकी चर्चा की है वह वास्तवमें उपवास है ही नहीं । लेकिन उन लोगोंमें भी ठीक-ठीक उपवास रखनेकी एक प्रथा है या पहले थी। यों वे लोग व्रत रखते हैं अथवा रखा करते थे, हमारे लिए इस बातका कोई महत्व नहीं है। जबरदस्ती थोपे गये उपवास अथवा किसी भी चीजका कोई महत्त्व नहीं हो सकता। ईसासे सम्बन्धित प्रश्न पूछनेमें क्षमा माँगने-की कोई जरूरत नहीं है। 'न्यू टेस्टामेंट' के जो शब्द ईसाके कहे जाते हैं, उन सबपर मैंने अत्यन्त श्रद्धा और बारीकीसे विचार किया है और सब-कुछ ईसा मसीहके बारेमें विनयकी भावना रखकर पढ़ा है; फिर भी मुझे वास्तवमें उनके और अन्य महान धर्मगुरुओंके उपदेशोंके बीच कोई मौलिक अन्तर नहीं दिखाई पड़ा। तुम ईसा