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अनिवार्य भरतीका विरोध
अपने नागरिकोंको जबरदस्ती युद्धमें झोंकनेका अधिकार है वह शान्तिके समय उनके जीवनके मूल्य तथा उनकी सुख-सुविधाका कभी उचित ध्यान नहीं करेगा। इसके अतिरिक्त अनिवार्य भरतोके कारण सम्पूर्ण पुरुषवर्ग सरलतासे प्रभावित होनेवाली आयुमें ही आक्रामक सैनिक-भावनासे ग्रस्त हो जाता है। युद्धका प्रशिक्षण देनसे लोग युद्धको अपरिहार्य ही नहीं वांछित भी समझने लगते हैं।

जबरदस्ती भरतीको सर्वत्र बन्द कर देने से युद्ध करना उतना आसान न रहेगा। जो देश जबरदस्ती भरतीको कायम रखता है, उस देशकी सरकारको युद्धकी घोषणा करने में जरा भी कठिनाई नहीं होती, क्योंकि वह सम्पूर्ण आबादीका मुँह सेनाको गतिशील होनेका आदेश देकर बन्द कर सकती है। जब सरकारोंको अपनी जनताकी स्वेच्छया दी गई स्वीकृतिपर निर्भर रहना पड़ता है तब उन्हें अपनी विदेशी नीतियोंमें सावधानी बरतना आवश्यक हो जाता है।

राष्ट्रसंघकी नियमावलिका पहला मसविदा बताते समय राष्ट्रपति विल्सनने[१] सुझाया था कि उससे सम्बद्ध सभी देशोंमें जबरदस्ती भरती अवैध करार दे दी जाये। यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम उस मूल भावनाको पुनः जीवित करें, जिससे प्रेरित होकर राष्ट्र संघको जन्म दिया गया है। युद्धमें भाग लेनेवाले बहुतसे देशोंकी भावना यही है और उससे सम्बद्ध अन्य देशोंके बहुतसे राजनीतिज्ञ भी उसके समर्थक हैं। सर्वत्र जबरदस्ती भरतीको बन्द करके हम शान्ति और स्वतन्त्रताकी दिशामें निर्णयात्मक कदम उठा सकते हैं। इसलिए हम सभी सद्भावनापूर्ण स्त्री-पुरुषोंसे निवेदन करते हैं कि वे सभी देशोंमें एक ऐसा लोकमत तैयार करने में सहायता दें जो सभी सरकारोंको तथा राष्ट्रसंघको सैनिकवादसे संसारको मुक्ति दिलानेके लिए निश्चित कदम उठाने और राष्ट्रोंमें स्वतन्त्रताका नया युग लाने तथा परस्पर भ्रातृत्वको भावना स्थापित करनेके लिए प्रेरित करें।

घोषणा-पत्रपर इंग्लैंड, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, भारत, स्वीडन, हॉलैंड, चैकोस्लावाकिया, बेल्जियम, स्पेन, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, आस्ट्रिया, जापान तथा नार्वेके सुप्रसिद्ध स्त्री-पुरुषोंके हस्ताक्षर हैं। सैनिकभावनाके उन्मूलनके लिए जबरन भरतीपर पाबन्दी लगाना निःसन्देह पहला कदम है। किन्तु सुधारकोंको भारी संघर्ष करना पड़ेगा, तभी राज्य वांछित दिशामें कदम उठायेंगे। अभी तो प्रत्येक राज्य अपने पड़ोसी राज्यसे डरता है और उसपर अविश्वास [२] करता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-९-१९२६
  1. संयुक्त राज्य अमेरिकाके राष्ट्रपति।
  2. मूल लेखमें 'विश्वास' शब्द छपा है। इसका सुधार ७-१०-१९२६ के यंग इंडियाके अंकमें किया गया था।