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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मौलिक सिद्धान्तोंकी विरासत उन्होंने हमें दी है, उनका साक्षात्कार आधुनिक प्रयोगशालाओंसे कहीं अधिक सम्पन्न प्रयोगशालामें किया गया था। उन सभीने हमें आत्मसंयमकी शिक्षा दी है।

[अंग्रेज़ीसे]
यंग इंडिया, १६-९-१९२६

४४३. अनिवार्य भरतीका विरोध

एक विशिष्ट तदर्थ समितिने जिसका पता ११ ऐबे रोड, एनफील्ड, मिडिलसेक्स, इंग्लैंड है और जिसके अवैतनिक मन्त्री श्री एच० रन्हम ब्राउन हैं, यूरोपमें निम्नलिखित निर्दोष घोषणापत्र[१] प्रचारित किया है:

युद्ध कालमें सभी देशोंके लोगोंने निश्चय किया था कि सैनिकवादके जुएको सदाके लिए उतार कर फेंक दिया जाये। और जब शान्तिकी स्थापना हुई तब राष्ट्रसंघके रूपमें इस आशाका अंकुर फूटते देखकर उसका स्वागत किया गया। यह ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य है कि युद्धके भयानक कष्टोंकी पुनरावृत्ति न हो।

हम माँग करते हैं कि सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण तथा सभ्य राष्ट्रोंके मनसे सैन्यीकरण दूर करने की दिशा में कुछ निश्चित कदम उठाया जाये। इस दिशामें सर्वाधिक प्रभावकारी उपाय होगा अनिवार्य भरतीका सर्वत्र बन्द किया जाना। इसलिए हम राष्ट्रसंघसे माँग करते हैं कि वह सच्चे निरस्त्रीकरणकी दिशामें पहले कदमके रूपमें सभी देशोंमें अनिवार्य सैनिक सेवाको बन्द करनेका सुझाव दे।

हमारा विश्वास है कि अनिवार्य रूपसे भरती की गई सेनाएँ और उनके पेशेवर अधिकारी शान्तिके लिए जबरदस्त खतरा हैं। अनिवार्य भरतीसे मानवीय व्यक्तित्वका ह्रास और स्वतन्त्रताका नाश होता है। बैरकोंका जीवन, सैनिक कवायद, आदेशोंका, चाहे वे कितने ही अन्यायपूर्ण और मूर्खतापूर्ण क्यों न हों, आँख मूंदकर पालन और हत्याकाण्डके लिए सैनिकोंका सुयोजित प्रशिक्षण जनतन्त्र तथा मानव-जीवनके प्रति व्यक्तिके सम्मान भावको समाप्त कर देते हैं।

मनुष्योंको अपना जीवन देने या उनकी अपनी इच्छाके विरुद्ध अथवा अपने कार्यको न्याय्यतामें विश्वास किये बिना, नरहत्या के लिए विवश करना मानवको प्रतिष्ठाको कलंकित करना है। जो राज्य यह समझता है कि उसे

  1. इसपर गांधीजी और कई अन्य प्रमुख भारतीय नेताओंके हस्ताक्षर थे।