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४४१. विद्यार्थियोंका धर्म

लाहौरसे एक भाईने बड़ी बढ़िया हिन्दीमें एक करुणाजनक पत्र लिखा है। मैं उसके मुख्य भागोंका भावानुवाद नीचे देता हूँ:

हिन्दू-मुस्लिम झगड़े, और कौंसिलोंके लिए चुनावकी भागदौड़ने असहयोगी छात्रोंका मन डाँवाडोल कर दिया है। देशके लिए उन्होंने बहुत त्याग किया है। देशसेवा ही उनका मूल मन्त्र है। आज उनका कोई कर्णधार नहीं है। कौंसिलोंके नामपर उनमें उत्साहकी लहरें नहीं उठ सकतीं और हिन्दू-मुस्लिम झगड़ोंमें भी वे नहीं पड़ना चाहते। इसलिए वे उद्देश्यहीन, बल्कि उससे भी बुरा जीवन बिता रहे हैं। क्या उनकी जीवन-तरीको यों ही बहने दिया जायेगा? कृपा करके यह भी याद रखें कि इस परिणामके लिए अन्तमें आप ही जिम्मेदार ठहरेंगे। यद्यपि नाममात्रके लिए उन्होंने कांग्रेसकी ही आज्ञा मानी थी; किन्तु असलमें उन्होंने आपकी ही आज्ञाका पालन किया था। तब क्या उन्हें रास्ता दिखाना आपका कर्त्तव्य नहीं है?

पानीका हौज हम भले ही बना दें, लेकिन क्या हम अनिच्छुक घोड़ेको वहाँ खींच ले जाकर पानी पीनेको बाध्य भी कर सकते हैं? मुझे इन शानदार नवयुवकोंसे सहानुभूति तो जरूर है, लेकिन उनकी इस अव्यवस्थितताके लिए मैं अपनेको दोष नहीं दे सकता हूँ । यदि उन्होंने पहले मेरी आवाज सुनी थी, तो आज भी उसे सुननेसे उन्हें कौन रोकता है? जिस किसीको सुननेकी परवाह हो उससे मैं चरखेका मन्त्र साधनेकी बात अनिश्चित स्वरमें नहीं कह रहा हूँ। लेकिन असल बात तो यह है कि १९२० में उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी थी (और यह ठीक भी था), बल्कि कांग्रेस-की बात सुनी थी। यदि यह कहें तो उससे भी सही होगा कि उन्होंने अपनी ही अन्तरात्माकी आवाज सुनी थी। कांग्रेसकी आज्ञा उनकी इच्छाकी प्रतिध्वनि थी। वे उसके निषेधात्मक कार्यक्रमके लिए तैयार थे। कांग्रेसके कार्यक्रमका रचनात्मक भाग चरखा चलाना, जो अब भी कांग्रेसकी आज्ञा है— उनको कुछ जँचती सी नहीं मालूम होती। अगर बात ऐसी ही है तो फिर कांग्रेसके रचनात्मक कार्यक्रमका एक और हिस्सा बचा हुआ है— अछूतोंकी सेवा । यहाँ भी, देशसेवाके लिए मरनेवाले सभी विद्यार्थियोंके लिए जरूरतसे ज्यादा काम है। वे जान लें कि वे सभी, जो समाजकी नैतिक स्थिति ऊँची करते हैं, या जो बेकारीके रोगमें ग्रस्त करोड़ों आदमियोंको काम देते हैं, स्वराज्यके सच्चे निर्माता हैं। इससे विशुद्ध राजनीतिक कार्य भी अधिक सहज बनेगा। इस रचनात्मक कार्यसे विद्यार्थियोंके अच्छेसे-अच्छे गुण प्रकट होंगे। यह काम स्नातकों और उपस्नातकों— सबके लिए उपयुक्त है। इसे करना ही सच्चा स्नातक होना है।

लेकिन यह भी सम्भव है कि चरखा या अछूतोद्धार कोई भी उनके लिए जोश दिलाने योग्य काम सिद्ध न हो। ऐसी हालतमें उन्हें जान लेना चाहिए कि