४३९. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको
आश्रम
साबरमती
बुधवार, भाद्रपद सुदी ८ [१५ सितम्बर, १९२६][१]
तुम्हारा पत्र मिल गया। श्रीमती पट्टणीका उत्तर आ गया है। उसे इसके साथ भेज रहा हूँ। तुम जब इच्छा हो तब बँगलेका कब्जा ले लेना।
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२७९) की माइक्रोफिल्मसे।
४४०. टिप्पणियाँ
शाहाबादके स्कूलोंमें चरखा
शाहाबाद जिला बोर्डकी चरखा समितिके मन्त्री लिखते हैं:[२]
प्रदर्शनके समय मन्त्रीने एक रिपोर्ट पढ़ी, जिसमें से निम्नांकित अंश मैं यहाँ देता हूँ:[३]
जिला बोर्डके स्कूलोंमें चरखेका प्रवेश करानेके लिए शाहाबाद जिला बोर्ड बधाईका पात्र तो है, किन्तु इसे सफल बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। क्या कते हुए सारे सूतकी मजबूती और समानताकी जाँच होती है? क्या वे लड़के-लड़कियाँ अपने-अपने चरखेकी मरम्मत करना जानते हैं? कातनेवालोंकी संख्याके लिहाजसे सूत काफी नहीं काता जा रहा है। इस तरह मनको समझा लिए जानेका खतरा है। वह तो बिलकुल ही न काते जानेकी अपेक्षा भी बुरा होगा।
हिन्दुस्तानी पाठ्यपुस्तकें
आजकल श्री ग्रेग शिमलाके समीप कोटगढ़में पहाड़ी बालकोंको श्री स्टोक्सके फार्ममें शिक्षा दे रहे हैं। इन्हीं श्री ग्रेगका एक पत्र मेरे पास आया है। उसमें से जो निम्नलिखित अंश उद्धृत किया जा रहा है उससे पता चलेगा कि हिन्दुस्तानी बालकोंके लिए पाठ्यपुस्तकें तैयार करना कितना कठिन है।